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________________ मे विभक्त करके प्रत्यक्ष के भी इन्द्रिय प्रत्यक्ष तथा नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष के दो भेद किये हैं। पांच इन्द्रियों के माध्यम से जो इन्द्रिय प्रत्यक्ष ज्ञान होता है इसे मतिज्ञान कहते हैं। मन भी अतीन्द्रिय के रूप में गिना है। इन्द्रियों के द्वारा होने के कारण इन्द्रिय प्रत्यक्ष नाम रखा, परंतु आत्म प्रत्यक्ष नहीं कहा । इसीलिए ये परोक्ष गिने जाते हैं। श्रुतज्ञान भी मतिज्ञान पूर्वक ही होता है अतः यह भी इन्द्रिय प्रत्यक्ष या परोक्ष ही गिना जाता है। इन्द्रिय प्रत्यक्ष कहिए या परोक्ष कहिए दोनों एक ही बात है। सीधे आत्म प्रत्यक्ष से होने वाले ज्ञान ३ है। अवधि, मनःपर्यव तथा केवलज्ञान । इनमें भी अवधिज्ञान तथा मनःपर्यवज्ञान ये दोनों देश नोइन्द्रिय प्रत्यक्ष है। बिना इन्द्रिय के सीधे आत्मा से प्रकट होने वाले ये तीनों ज्ञान हैं । इसमें भी अवधि ज्ञान तथा मनः पर्यवज्ञान ये दोनों लोक-अलोक के समस्त द्रव्यों को ग्रहण करनेवाले न होने से इन्हें देश प्रत्यक्ष कहा जाता है। तथा अनंत लोक अलोक के अनंत द्रव्य-गुण-पर्यायों को तीनों काल के पदार्थों का एक ज्ञान करने वाले सर्व प्रत्यक्ष के भेद में केवलज्ञान लिया जाता है। इन्हें इन्द्रियों की आवश्यकता नहीं रहती। अवधिज्ञान का स्वरूप :- अवधि ज्ञान मर्यादा-सीमा के अर्थ में प्रयुक्त है। काल की तथा क्षेत्र की दोनों प्रकार की अवधि होती है। यहां क्षेत्रावधि से संबंध है। नियत क्षेत्र तक के पदार्थ इन्द्रियों तथा मन की मदद के बिना भी सीधे स्पष्ट ज्ञान के विषय बनें यह अवधिज्ञान कहलाता है । यह तथाप्रकार के अवधिज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम से होता है। द्रव्य-क्षेत्रादि से मर्यादित रूपी द्रव्य का ज्ञान अवधिज्ञान कहा जाता है। नन्दिसूत्रादि में यह दो प्रकार का मुख्य बताया गया है। - अवधिज्ञान भव प्रत्ययिक . . क्षयोपशम (गुण) प्रत्यंयिक . अनुगामी अननुगामी वर्धमान हीयमान प्रतिपाती अप्रतिपाती देवता तथा नारकी को मनुष्य तथा तिर्यंच को से किं तं ओहिणाण पच्चक्खं? ओहिणाण पच्चक्खं दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-भवपच्चतियं च, खयोवसमियं च । दोन्हं भवपच्चतियं, तं जहादेवाणं च रतियाणं च। दोन्हं खयोवसमियं, तं जहा-मणुस्साणं च पंचेंदिय तिरिक्खजोणियाणं च ।।) नंदि सूत्र के आधार पर-प्रत्यक्ष अवधिज्ञान कैसा है? अवधिज्ञान प्रत्यक्ष कर्म की गति नयारी (२०६)
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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