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मनुष्य का चारों गतिमें गमन
मनुष्य
तिर्यंच
नरक
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नारकीओ का दो गतिमें गमन
देवताओ का दो गतिमें गमन
तिर्यच का चारों गतिमें गमन
जन्म लोगे । बन्दर बनकर पर्वतमाला के वृक्षों पर कूदते रहोगे ।" बन्दर का भव सुनते ही देव बडा दुःखी हुआ। अरे रे....! इतना सुन्दर देव का जन्म, और यह स्वर्गीय सुख-भोग सब कुछ छोड़कर, मृत्यु पा कर तिर्यंच गति में बन्दर बनना पडेगा । उसके लिए असह्य हो गया ।
देव गति से हीरे - सोने में जन्म :
देवगति से मृत्यु पा कर पशु-पक्षी बनना पड़े यह तो फिर भी अच्छा है । चूंकि पंचेन्द्रिय पर्याय में तो हैं। लेकिन शास्त्रकार महर्षि यहां तक कहते हैं कि देव गति का जीव देव जन्म से मृत्यु पा कर एकेन्द्रिय पर्याय में हीरे-मोती - सोने-चांदी आदि में भी जन्म लेता है । ये भी तिर्यंच गति में ही कहलाते हैं । गति तिर्यंच की ही है, लेकिन जाति एकेन्द्रीय की है । एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय ये पाँचो इन्द्रियवाले जीव तिर्यंच गति में गिने जाते हैं । अब आप सोचिए . . देव गति का पंचेन्द्रिय देव गिर कर एकेन्द्रिय पर्याय में हीरे-मोती- सोने-चांदी में कर्म की गति नयारी
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