________________
1
मूल जड है । भ्रमवश या अज्ञानवश जीव सच्चे ज्ञान के बजाय विपरीत दिशा में भटक जाता है । जगत् के अनंत पदार्थों के ज्ञान का मूल खजाना एक आत्मा ही है । यही ज्ञान का मूलस्रोत है । हमें बाहरी दुनिया में भटकने की जरूरत नहीं है । बाहर भटकने वाले बाहरी लाखों-करोड़ों पदार्थों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं परंतु अपने ही मूल तत्त्व आत्मा को सही अर्थ में नहीं पहचानते हैं । उसे तो सर्वथा भूल ही गए । परिणाम स्वरूप हुआ ऐसा कि जिसे जानना था उसे तो भूल गए और जिसे भूलना था उसके पीछे हम आसक्त हो गए। यह बात तो ऐसी हुई, मानों एक मां जल्दी बाजी में अपने बच्चे के बजाय बिल्ली के बच्चे को ही बगल में उठाकर भाग चली । और अपना बच्चा घर की आग में जलकर मर गया । परंतु जब तक उस बावरी मां ने बगल में देखा ही नहीं है तब तक वह यही मान रही है कि मैं मेरे बेटे के साथ सही सलामत हूं । परंतु ज्योंही दूध पिलाने के लिए हाथ में लिया त्योंही बिल्ली के बच्चे को देखकर वह हतप्रभ हो गई । आग-बबुला हो गई। परंतु किस पर ? अब पता चलते ही कि यह बिल्ली का बच्चा है मेरा नहीं है, मेरा तो वहीं रह गया ! यह सही ज्ञान होते ही मां भागी । उसके प्राण होठो पर आ चुके थे। वहां जाकर देखा तो लगा कि आग में सब कुछ खाख हो गया है। अब बेचारी सिर पीट कर रोने लगी । अंत में मां ने भी प्राण छोड दिया । सोचिए अज्ञान कैसा प्राणनाशक घातक होता है ? शायद सही सोचें तो यही हाल हमारा भी है। हम भी जीवादि नौ तत्त्वों को सही स्वरूप में नहीं जानते हैं । अपनी ही आत्मा को वास्तविक रूप में नहीं जानते हैं और सारा जगत् जानने के लिए दुनिया भर में भटक रहे हैं। शायद न जानने जैसा ज्यादा जान रहे हैं। अनावश्यक चीजों का ज्यादा ज्ञान बटोर रहे हैं। जो निरर्थक है निरुपयोगी है। जो जानने जैसा नहीं है उस ज्ञान को हम प्रयत्न पूर्वक जानने की कोशिश कर रहे हैं। कितनी विपरीत बात है? अंत में परिणाम क्या आएगा ? आत्मज्ञान के बिना हमारा कल्याण कैसे संभव होगा ? लेकिन इस दिशा तरफ लक्ष्य ही नहीं है। अभी तक तो बाहरी दुनिया के रंगबिरंगी पदार्थ अच्छे लग रहे हैं। बाह्य संसार के भौतिक जड़ पदार्थों का महत्त्व ज्यादा अच्छा लग रहा है । अतः यहां गए, वहां गए, यह देखा - वह देखा सारी दुनिया देखी, सैंकड़ों पदार्थों का संचय किया । दुनिया में बड़े जानकार के रूप में अच्छी प्रसिद्धि प्राप्त की, कई उपाधियां हांसिल की। लेकिन अंतिम अवस्था में मृत्यु शैय्या पर जब यह बाहरी ज्ञान कोई काम नहीं आता, जब कोई वस्तु काम नहीं आती, किसी का उपयोग कामयाब नहीं बनता तब शायद सिरपीट कर रोने की नौबत आती है। हाय! अब क्या होगा ? जब प्राण निकलने की घडियां गिनी जा रही है ! यमराज आंखों के सामने हडप करने के लिए बाघ की तरह मुंह बहाए खड़ा है । अब सारी दुनिया का ज्ञान भी क्या काम आएगा ? ऐसे समय में एकमात्र आत्मज्ञान सम्पन्न कर्म की गति नयारी
(१८६