________________
समस्त लोक में सारभूत तत्त्व एक मात्र धर्म ही है, और धर्म में भी सारभूत तत्त्वज्ञान को कहा गया है। ज्ञान का भी सार संयम चारित्र बताया गया है। ऐसे सारभूत चारित्र से निर्वाण पद की प्राप्ति होती है, अतः एक दूसरे का आधार एकदूसरे पर है। वैसे ही उमास्वाति पूर्वधर महापुरूष ने तत्त्वार्थ सूत्र की आद्य कारिका में लिखा है कि
सम्यग् दर्शन शुद्धं यो ज्ञानं विरतिमेव चाप्नोति।
दुःख निमित्तमपिदं तेन सुलब्धं भवति जन्म ।।
सम्यग् दर्शन-सच्ची श्रद्धा से युक्त ऐसा ज्ञान यदि विरति (चारित्र) को प्राप्त होता है तो उससे दुःख से प्राप्त होने वाला यह जन्म भी सुलभ बन जाता है । ज्ञान कैसा चाहिए ? यह विचार करने योग्य बात है। जैसे जन्मान्ध व्यक्ति के जीवन में सदा ही अंधेरा छाया रहता है वैसे ही अज्ञानी जीव के जीवन में सदा अंधेरा छाया रहता है। भूमिगृह में जैसे सूर्य की किरणें नहीं पहँचती और अंधेरा ही भरा रहता है वैसे ही अज्ञानी का जीवन अंधकार जैसा है। अतः अज्ञान निवृत्ति के लिए जीव को ज्ञानमार्ग की प्रवृत्ति करनी ही पड़ेगी। सम्यग् ज्ञान-सच्चे ज्ञान को प्राप्त करने के लिए भगीरथ पुरूषार्थ करना ही पड़ेगा। नाण किरियाहिं मोक्खो'- ‘ज्ञान क्रियाभ्यां मोक्षः' ज्ञान और क्रिया से ही मोक्ष मिलता है। यह हमारे आगम शास्त्र कहते हैं। अतः ज्ञान की महिमा अपरम्पार है। ज्ञान क्या है ? द्रव्य या गुण :___ज्ञान से कोई अछूता या अन्जान नहीं है। ज्ञान का अनुभव संसारस्थ सभी जीव प्रतिदिन करते हैं। ज्ञान के बिना हमारा व्यवहार ही नहीं चलता है। बोलनेचलने-देखने-सूंघने-चखने कहने आदि सभी क्रियाओं में मुख्य ज्ञान का ही व्यवहार रहता है। सूर्य के प्रकाश को, तथा कपड़े की सफेदी को हम द्रव्य न कहकर गुण कहते है वैसे ही आत्मा का ज्ञान यह गुण है। ज्ञान द्रव्य नहीं है। द्रव्य स्वयं अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखता है। अस्तिकायवान् प्रदेश समूहात्मक अस्तित्ववाला द्रव्य होता है । ज्ञान के कोई प्रदेश नहीं है और न ही ज्ञान प्रदेश समूहात्मक अस्तित्व वाला द्रव्य है। द्रव्य वह कहलाता है जिसके गुण और पर्याय हो। “गुणपर्यायवद्-द्रव्यम्' गुण-पर्यायवाला द्रव्य कहलाता है। ज्ञान का कोई गुण नहीं है। चूंकि ज्ञान स्वयं ही गुपा है । गुण का लक्षण करते हुए कहा है कि - "द्रव्याश्रयि निर्गुणाः गुणाः'' गुण स्वयं निर्गुण होते हैं गुण में गुण नहीं रहते। जो द्रव्य में रहते हो, द्रव्य के आधार पर रहते हो एवं स्वयं निर्गुण हों वे गुण कहलाते हैं। अतः ज्ञान द्रव्य सिद्ध नहीं हो सकता। सफेदी यह स्वयं द्रव्य नहीं है परंतु गुण है। अतः यह गुण
कर्म की गति नयारी