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________________ करने की इच्छा हो तो जानबूझकर समता आदि भाव से तीव्र वेदना अशाता आदि को सहन कर लेना उससे उदय का काल परिपक्व न होते हुए भी वे कर्म उदीरणा के माध्यम से उदय में खिंचकर लाए जाते हैं। यह उदीरणा है। जैसे आम के वृक्ष पर आम अपने समय पर पकते हैं, और उन्हीं आम को जबकि वे कच्चे हरे हैं, उस समय तोड लेते हैं और घास में पेक कर रखते हैं, विशेष गर्मी से जल्दी पकते हैं। तो जो आम १०-२० दिन बाद पकने वाले थे उनकी ३ दिन में पका कर बेचने वाले बेचते हैं। उसी तरह उदयकाल न होने पर भी जिन कर्मों की उदीरणा की जाय अर्थात् खिंचकर लाकर विशेष समता आदि से भोग लेना यह उदीरणा कहलाती है। उदाहरणार्थ साधु महाराज केश लोच करते हैं, विहार करते हैं। बड़ी लम्बी तपश्चर्या आदि करके क्षुधा आदि सहन की जाती है। ये सारे कर्मोदय जन्य नहीं है यह विशेष धर्माराधना है। साधक वेदना को भी हसते हुए आनंद से सहन करता है इस उदीरणा की प्रक्रिया में कई कर्म जिनका उदय में आने का काल परिपक्व नहीं हुआ है वे उदय में आकर क्षय हो जाएंगे। चित्र में उदीरणा विभाग में गजसुकुमाल कायोत्सर्गध्यान में खडे हैं और सोमिल श्वसुर जलते हुए अंगारे सिर पर रखकर उपसर्ग कर रहे है, फिर भी मुनि महात्मा समता भाव से हसते हुए सहन कर काफी कर्म निर्जरी की। यह उदीरणा है। (४) सत्ता - सत्ता का अर्थ है-अस्तित्व । जैसे एक करोडपति व्यापारी जो घर में बैठा है या बाग में टहल रहा है। ऐसे समय जेब में पैसे नहीं है फिर भी श्रीमंत पैसे वाला तो कहलाएगा ही। क्योंकि उसके करोड़ों रुपए बैंक में जमा है। व्यापारियों को ब्याज पर दिये हुए हैं। कई कम्पनियों में रोके हैं। अतः हाथ में या जेब में न भी हो फिर भी वह करोड़पति तो कहा जाएगा। उसी तरह कुछ कर्म अभी उदय में नहीं है। आज शरीर स्वस्थ है। नाखुन में भी रोग नहीं है, परंतु कई कर्म सत्ता में पड़े हैं। उनका अस्तित्व है। जैसे एक महिने बाद की ट्रेन की टिकिट रिजर्व कराई है, और आज भले ही बाजार में घूम रहे हैं। फिर भी रिजर्व टिकिट होने से मूल सत्ता में तो जाना निश्चित है ही। उसी तरह कर्म की स्थितियां दीर्घावधि की है। जिसके कारण आज वे कर्म उदय में नहीं दिखाई दे रहे हैं, परंतु इसका मतलब यह नहीं कि कर्म है ही नहीं। वे कर्म सत्ता में पड़े रहते हैं। समयं परिपक्व होने पर उदय में आते हैं। यह सत्ता है। जैसे भगवान महावीर ने तीसरे मरीचि के भव में नीच गोत्र कर्म बांधा था। वह लगातार १४ भव तक तो उदय में रहा। ७ बार नीच गोत्र में पटका। याचक कुल में याचक बनाया। उसके बाद वह नीच गोत्र कर्म सत्ता में छिपा बैठा रहा और अंतिम २७ वें भव में पुनः उदय में आया। इस तरह जैसे पैसा खजाने में पड़ा रहता है वैसे ही कर्म भी सत्ता में रहता है। यह खजाने जैसा स्थान है । सत्ता में पड़े हुए कर्म काल परिपक्व होने पर उदय (१५७) कर्म की गति नयारी
SR No.002477
Book TitleKarm Ki Gati Nyari Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorArunvijay
PublisherMahavir Rsearch Foundation Viralayam
Publication Year2012
Total Pages236
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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