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जाने का है (८) अंतराय कर्म की ५ उत्तर प्रकृतियों का स्वभाव आत्मा के अनंत वीर्य (शक्ति) दानादि लब्धिगुण को ढककर उन लब्धि के प्राप्त होने में विघ्न करने का है। इस तरह यह प्रकृति बंध का कार्य क्षेत्र है। सभी कर्म की प्रकृतियां अपना भिन्न भिन्न स्वभाव दिखाती है, तथा आज सभी कर्म युक्त संसारी जीवों की सभी प्रवृत्ति इन कर्मों की प्रकृति (स्वभाव) के आधार पर चल रही है।अब आत्मा को चाहिए कि बलवान बनकर कर्म प्रकृतियों को हटाकर, क्षयकर, नष्टकर या दबाकर भी आत्मगुणानुरूप पुरूषार्थ करे और आत्म गुणों का प्रादुर्भाव करे यही धर्म है।
(२) स्थिति बंध - स्थिति = काल मर्यादा - Time Limit "कर्म पुद्गल राशः का परिगृहीतस्यात्मप्रदेशेष्ववस्थानं स्थितिः।।" कर्ता आत्मा के द्वारा परिगृहीत जो कार्मण वर्गणा के पुद्गलों की राशि आत्म प्रदेश में जितने काल तक रहे उसे स्थिति कहते हैं। उस स्थिति काल तक कर्म का आत्मा से चिपके रहना स्थिति बंध है। R.C.C. का एक मकान बन चुका है अब वह तक कितने वर्षों तक टिकेगा? यह काल मर्यादा स्थिति कहलाती है। उदाहरणार्थ किसी मकान की स्थिति ६० वर्ष है, तो किसी मकान की १०० वर्ष है। फिर वह टूटने लगता है। सीमेन्ट के परमाणु पानी के साथ मिलकर खंभे - दिवाल के रूप में जो स्थिति है उनकी काल अवधि ६० या १०० साल रहती है। उसी तरह आत्मा के साथ मिले हए कार्मण वर्गणा के. जड़ पुद्गल परमाणुओं की आत्म प्रदेशों में रहने के काल को स्थिति बंध कहते हैं। भिन्न भिन्न कर्मों का स्थिति काल भिन्न भिन्न है ।
८ कर्म जघन्य स्थिति उत्कृष्ट स्थिति (१) ज्ञानावरणीय कर्म १ अंतर्मुहूर्त ३0 कोड़ा कोड़ी सागरोपम (२) दर्शनावरणीय कर्म ... १ अंतर्मुहूर्त ३० कोड़ा कोड़ी सागरोपम (३) वेदनीय कर्म १२ अंतर्मुहूर्त ३० कोड़ा कोड़ी सागरोपम (४) मोहनीय कर्म ....... १ अंतर्मुहूर्त............ ७० कोड़ा कोड़ी सागरोपम (५).आयुष्य कर्म १ अंतर्मुहूर्त........... सिर्फ ३३ सागरोपम (६) नाम कर्म . .. ..८ अंतर्महर्त ... - २० कोड़ा कोड़ी सागरोपम (७) गोत्र कर्म
८ अंतर्मुहूर्त : २0 कोड़ा कोड़ी सागरोपम .(८).अंतराय कर्म १ अंतर्मुहर्त ३० कोड़ा कोड़ी सागरोपम
.इस तालिका से संक्षेप में आठों कर्म की जघन्य अर्थात् कम से कम और उत्कृष्ट अर्थात् अधिक से अधिक कर्म स्थिति बंध बतलाया है, अर्थात् आत्मा के साथ चिपका हआ कर्म कम से कम १,८ या १२ अंतर्मुहर्त तक रहता है। जबकि अधिक से अधिक उत्कृष्ट स्थिति काल २०, ३0 और ७० कोड़ा कोड़ी सागरोपम का काल है। कर्म की गति नयारी
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