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इसी तरह अजीव द्रव्य भी इसी १४ राजलोक में है। इसके बाहर अर्थात् लोक के बाहर अजीव द्रव्य का एक परमाणु भी नहीं है जो भी कुछ है वह सब कुछ इस लोक में ही है अलोक में कुछ भी नहीं है सिवाय आकाश। दो द्रव्य और पंचास्तिकाय :
इस तरह लोक और अलोक दोनों में मिलाकर यदि द्रव्यों का विचार किया जाय तो सिर्फ दो ही मूलभूत द्रव्य है। दो के अलावा इस अनन्त ब्रह्मांड में तीसरा कोई द्रव्य ही नहीं है (१) जीव (२) अजीव। अन्य सभी जो भी द्रव्य है वे इन्हीं दो द्रव्यों के अंतर्गत ही गिने हैं। परन्तु द्रव्य सत्ता में मूलभूत दो ही गिने जाते हैं। अन्य इन्हीं के अवांतर भेद हैं।
जीव द्रव्य (चेतन)
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अजीव द्रव्य (जड़)
धर्मास्तिकाय अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय काल पुद्गलास्तिकाय
मुख्य दो द्रव्यों में जीव द्रव्य को ही चेतन नाम भी दिया गया है। इसी चेतन द्रव्य को आत्मा संज्ञा भी दी जाती है । अतः आत्मा, जीव, चेतन ये सभी समानार्थक पर्यायवाची नाम हैं। इससे भिन्न अजीव द्रव्य है। जिसे जड भी कहा है। यह अजीव द्रव्य जीव से सर्वथा पृथक भिन्न इसलिए है कि जीव के गुणधर्म अजीव में नहीं है। जीव-चेतन द्रव्य में ज्ञान-दर्शनादि गुण है, सुख-दुःख की संवेदना अनुभव करने का गुण है। परन्तु अजीव द्रव्य में जानने और देखने की क्रिया करने वाले ज्ञानदर्शन गुण नहीं है इसी तरह अजीव-जड द्रव्य में सुख-दुःख का अनुभव करने की संवेदना भी नहीं है । अतः अजीव द्रव्य जीव द्रव्य से सर्वथा भिन्न है। अ + जीव = जो जीव नहीं है वह अजीव । निर्जीव = निर् + जीव = जो जीव रहित है वह निर्जीव । द्रव्यों में भेट करता है । जीव के गुण भिन्न है। उसी तरह अजीव के गण भी भिन्न है अतः दोनों स्वतंत्र अस्तित्व रखते हए स्वतंत्र द्रव्य है । हम समस्त संसार में यही प्रत्यक्ष देखते हैं । जब भी देखते हैं, जो भी देखते हैं उनमें इन्हीं दो को ही देखते हैं। तीसरे द्रव्य का अस्तित्व ही नहीं है ।
अजीव द्रव्य के पांच भेद है (१) धर्म द्रव्य (२) अधर्म द्रव्य (३) आकाश द्रव्य (४) काल द्रव्य और (५) पुद्गल द्रव्य। धर्मादि नाम से भ्रम न हो अतः इनका नाम ध्यान में रखें । (१) धर्मास्तिकाय(२) अधर्मास्तिकाय (३) आकाशस्तिकाय (४) काल (५) पुद्गलास्तिकाय । अस्तिकाय अर्थात् प्रदेश समूह। अस्तिकाय
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कर्म की गति नयारी