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प्रथम अध्ययन : हिंसा - आश्रव
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जानने वाले, (जीव) जीवों का (इमेहि) आगे बताए जाने वाले इन (विविहि) विभिन्न, ( कारणेहिं कारणों से (हणंति) घात करते हैं ।
( किं ते ?) वे कारण कौन-कौन-से हैं ? ( करिसण- पोक्खरिणी-वाविवप्पिणि- कूवसर-तलाग-चिति वेइया-खातिय आराम-विहार-थूभ-पागार-दार गोउर- अट्टालग-चरिया-सेतुसंकम-पासाय- विकप्प-भवण- घर - सरण-लेण - आवण-चेइय- देवकुल-चित्तसभा-पवा-आयतणावसह - भूमिघर - मंडवाण कए ) खेती या खेत, पुष्करणी- छोटा तालाब-पोखर, बावड़ी, क्यारियाँ, कुआ, तालाब, कमलसरोवर, चिता, वेदिका, खाई, बाग, बौद्धविहार या मठ, स्तूप, कोट, द्वार, नगर का सदर दरवाजा, अटारी, नगर और कोट के बीच में आठ हाथ चौड़ा मार्ग, पुल, विकट स्थान से उतरने का मार्ग, राजभवन -महल, बंगला, या प्रासाद के अन्तर्गत मकान, भवन- पक्का घर, मामूली घर, तृणकुटीरझोंपड़ी, पर्वतीय आवासस्थल, बाजार, यक्षादि की प्रतिमा के स्थान, देवालय - शिखरबद्धदेव-भवन, चित्रों से सुसज्जित सभामण्डप, प्याऊ, देवायतन देवस्थान, तापसों का आश्रम, भूमिगृह तलघर या भौंयरा, छाया के लिए कपड़े के तम्बू - मंडप के लिए, (य) और (विविहस्स) अनेक प्रकार के ( भायण भंडोवगरणस्स) सोना-चांदी, ताम्बा, पीतल आदि धातुओं के बर्तनों तथा मिट्टी के अनेक किस्म के बर्तनों एवं नमक मिर्च आदि बेचने की सामग्री, रूप (किराना) तथा ऊखल मूसल आदि साधनरूप उपकरणों के ( अट्ठाए ) निमित्त, ( मंद बुद्धिया) मंदबुद्धिवाले लोग, ( पुढव) पृथ्वीकायिक जीवों की, ( हिंसंति) हिंसा करते हैं । (य) और (मज्जणय - पाण-भोयण- वत्थ-धोवण-सोयमा दिएहि ) स्नान, पान, भोजन, वस्त्र धोने और शौच ( सफाई मांजने, धोने, कुल्ला करने, टट्टी जाने आदि) आदि कारणों से (जलं) जलकायिक जीवों का (य) तथा ( पयणपयावण जलावणविदंसह) पकाने, पकवाने, जलाने, उजाला करने आदि कारणों से (अर्गाण) अग्निकाय के जीवों का, तथा ( सुप्प - वियण- तालयंट- परिथुनक-हुणमुह - करयल-सग्गपत्त-वत्थ एवमादिहिं) सूप ( छाज), पंखों, ताड़ के पत्तों के पंखे, मोरपंख, कागज आदि के पन्ने, मुंह, हाथ, सर्गवृक्ष के पत्ते, वस्त्र आदि से ( हवा करके) (अणिलं) वायुकायिकजीवों का घात करते हैं । तथा ( अगार - परि (डि) यार-भक्ख-भोयण-सयणासण- फलक-मुसलउखल-तत-विततातोज्ज-वहण वाहण मंडव - विविहभवण- तोरण- विटंग - देवकुल- जालयद्धचंदनिज्जुहग - चंदसालिय- वेतिय - निस्सेणि- दोणि चंगेरी-खील मंडव-सभावसह - गंधमल्लालेवणंबरवर - जुय - नंगल - मेइय- कुलिय- संदन सीया-रह-सगड - जाणजोग्ग-अट्टालग-चरिअदार- गोपुर-फलिह - जंत-सूलिया-लउड- मुसंढि सयग्धी- बहुपहरणा- वरणुवक्खराण कए ) घर, तलवार आदि का म्यान, मोदक आदि भक्ष्यवस्तु, चावल आदि भोजन, शय्या, आसन ( खाट या पलंग ) लकड़ी का तख्त ( पट्टा), मूसल, ऊखल, वीणा आदि वाद्य, ढोल, नगाड़े आदि बाजे, जहाज, गाड़ी आदि सवारी, लता आदि का मंडप, अनेक प्रकार के भवन ( ईमारतें ), तोरण, कबूतरों के बैठने का स्थान, देवालय, झरोखे, विशेष
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