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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र ५२ किस्म की सीढ़ियाँ, दरवाजे पर अगल-बगल में निकले हुए लकड़ी के कंगूरे, चौबारा, वेदी, निसैनी, नाव, बड़ी टोकरी, कील ( खूंटियाँ), रावटी या खेमा ( कपड़े की पटकुटी), सभा, प्याऊ, मठ, सुगन्धित चूर्ण (पाउडर), फूलों की माला और चन्दन आदि का लेप, कपड़े, जूड़ा (जुआ), हल, खेत को जोतने के बाद भूमि को सम करने वाला औजार (सुहागा ), हल की तरह का खेती का औजार, विशेष प्रकार का रथ, पालकी, रथ, बैलगाड़ी, यान- एक विशेष प्रकार की घोड़ा आदि के जुतने से चलने वाली गाड़ी, अटारी, नगर और प्राकार के बीच का आठ हाथ का मार्ग, द्वार, नगर का सदर दरवाजा, आगल, रेंहट या खाई को ढकने के लिए अरघट्ट आदि यंत्र, शूली, लाठी, बंदूक, तोप, तलवार आदि बहुत प्रहार करने के शस्त्र, ढाल, कवच आदि आवरण, एवं मंच, पलंग, मकान आदि उपकरणों-साधनों के लिए, ( एवमादिएहि ) ये और इसी प्रकार के ( अण्णेहि ) अन्य ( बहू हि ) बहुत से, (कारणसहि) सैकड़ों कारणों - प्रयोजनों को लेकर (ते) उन (तरुगणे) वृक्षों के समूह ( उपलक्षण से अन्य वनस्पतिकायिक जीवों) की (हिंसंति) हिंसा करते हैं । ( एवमादी ) इस प्रकार और भी, (भणिता) कहे हुए (अभणिए य) अथवा नहीं कहे हुए, ( सत्तपरिवज्जिया) शक्ति हीन, (सत्ते) प्राणियों का, ( दढमूढा ) पापकर्म में दृढ़ और मूढ अथवा वज्रमूर्ख, (दारुणमती) कठोर बुद्धि वाले जीव ( उवहणंति) घात करते हैं। किस कारण से मारते हैं ? (कोहा) क्रोध, द्व ेष और ईर्ष्या के वश (माणा) अभिमान के वश (माया) कपटवश; (लोहा) लोभवश, ( हास - रती- अरती-सोय-वेदत्थ-जीय कामत्थधम्महेउ ) हास्य के वश, रति, अरति और शोक के वश, वेद अर्थात् स्त्री वेद, पुरुषवेद व नपुंसकवेद में से किसी वेद के उदय होने पर उस की पूर्ति के लिए, अथवा 'वेदत्थ' पाठ होने से 'वेदोक्त अनुष्ठान के लिए' यह अर्थ भी निकलता है । जीने की कामना के लिए, काम भोग की छापूर्ति के लिए अर्थ के लिए और कुलजाति आदि के तथाकथित धर्म पालन के लिए या धर्म के नाम पर बताई हुई क्रिया के हेतु; (संवसा ) स्वाधीन (अवसा ) या पराधीन होकर, (अट्ठा) प्रयोजन से (य) और (अणट्ठाए ) बिना ही प्रयोजन के, (तसपाणे) सजीवों (य) और ( थावरे) स्थावरजीवों की (हिंसंति) हिंसा करते हैं । ( मंदबुद्धी सवसा हणंति) मंदबुद्धि वाले अज्ञजन स्वाधीन होकर मारते हैं, (अवसा हणंति) पराधीन होकर मारते हैं, ( सवसा अवसा दुहओ हणंति) स्वतंत्र व परतंत्र होकर दोनों प्रकार से मारते हैं, (अट्ठा हणंति) प्रयोजनवश मारते हैं, (अणट्ठा हणंति) विना प्रयोजन के मारते हैं (अट्ठा अणट्ठा दुहओ हणंति) प्रयोजन व निष्प्रयोजन दोनों तरह से मारते हैं, (हस्सा हणंति) हंसी में मारते हैं, (वेरा हणंति) शत्रुतावस मारते हैं, (रती हणंति) भोगों में रति (आसक्ति) के कारण से मारते हैं, ( हसवेरारतीय हणंति) कई हंसी, वैर और रति इन तीनों कारणों से मारते हैं, ( कुद्धा हणंति) कई क्रुद्ध होकर मारते हैं, (लुद्धा हणंति) कई लुब्ध यानी किसी चीज में
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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