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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र और (एवमादिएसु अन्ने सु मणुन्नभद्दएसु तेसु फासेसु) ये तथा इसी प्रकार के दूसरे मनोहर एवं स्पर्शनेन्द्रियप्रिय स्पर्शों में (समणेण) परिग्रहत्यागी श्रमण को (न सज्जियन्वं) आसक्ति नहीं करनी चाहिए, (न रज्जियवं) अनुरक्त नहीं होना चाहिए, (न गिज्झियब्वं) ग.द्धि--मनोज्ञ के पाने की सतत लालसा भी नहीं करनी चाहिए, (न मुज्झियज्वं) न मोह करना चाहिए, (न विणिग्यायं आवज्जियवं) उन पर फिदा हो कर अपने आप को न्योछावर नहीं करना चाहिए या पतंगे की तरह उस पर टूट नहीं पड़ना चाहिए, (न लुभियव्वं) न ही लोभ करना चाहिए, (न अज्झोववज्जियव्वं) बार-बार आकांक्षा करके आत्मा में उसी बात को घोलते नहीं रहना चाहिए, (न तूसियव्वं) न मनोज्ञवस्तु प्राप्त होने पर मन में प्रसन्न होना चाहिए, (न हसियव्वं) न ही हंसना चाहिए। न तत्थ सति च मतिं च कुज्जा) न उनका बार-बार स्मरण तथा मनन करना चाहिए । (पुणरवि) पुनश्च (फासिदिएण) स्पर्शनेन्द्रिय से (अमणुन्न पावकाई) अमनोज-अरुचिकर एवं पापजनित अशुभ (फासाइं) स्पर्शों को (फासिय) स्पर्श करके क्रोधादि नहीं करना चाहिए । (किं ते ?) वे अमनोज्ञ स्पर्श कौन-कौनसे हैं ? (अणेगवधबंधतालणंकण-अतिभारारोपण-अंगभंजण-सुईनखप्पवेस-गायपच्छणण-लक्खारस-खारतेल्ल - कलकलंत-तउसीसककाललोहसिंचण-हडिबंधण-रज्जुनिगल-संकल-हत्थंडुय-कुंभीपाक-दहण-सीहपुच्छण-उब्बंधण-सूलभेय- गयचलणमलण-करचरणकन्ननासोट्ठसीसछेयण-जिन्भछेयण-वसण-नयण-हियय-दंतमंजण-जोत्तलयकसप्पहार. पादपण्हि-जाणु-पत्थरनिवाय-पोलण-कविकच्छु-अगणि- विच्छ्यडक्क वायातवदंसमसकनिवाते)अनेक प्रकार के रस्सी आदि के बन्धन, वध-लाठी आदि से मारपीट, थप्पड़, या मुक्के आदि मारना,तपी हुई गर्मागर्म लोहे की सलाई से शरीर पर डांभ देना-अंकित कर देना, अत्यन्त बोझ लाद देना, अंगभंग करना, या अंगों को मोड़ना, नखों में सूइयाँ घुसेड़ना, शरीर में छेद करना, गर्म लाख का रस, खार, तेल, तपे हुए सीसे व काले लोहे का सिंचन-सेक करना, खोड़े में डाल देना, रस्सी को बेड़ी से बांध देना, लोहे की जंजीर तथा हथकड़ियां डालना, कड़ाही में डाल कर पकाना, आग में जलाना, सिंह को पूछ से बांध कर घसीटना, पेड़ आदि से उलटा बांध देना, शूली में पिरो देना, हाथी के पैर के नीचे कुचलवा देना; हाथ, पैर, कान, नाक, ओठ और सिर का छेदन करना, जीभ खींच लेना, अंडकोश, नेत्र, हृदय और दांतों को तोड़फोड़ कर निकलवाना, बेंत और चाबुक से पीटना, पैरों के पिछले भाग और घुटनों पर पत्थर गिराना, कोल्हू में पीलना, कौंच की फली, अग्नि, बिच्छू का डंक, हवा, गर्मी, डांस
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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