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________________ दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह - संवरद्वार ७७३ आरोपणा । जिसमें लघुमासादि प्रायश्चित का वर्णन है, वह उद्घातिक निशीथ है जिसमें गुरु मासादि का वर्णन है, वह अनुद्घातिक निशीथ, और जहाँ किसी एक प्रायश्चित्त में अन्य प्रायश्चित्त का आरोपण करने का वर्णन है, वह आरोणानिशीथ है । इस प्रकार कुल मिलाकर २८ भेद आचार प्रकल्प के होते हैं। ये आचार प्रकल्प साधु जीवन में अन्तरंग - बाह्य परिग्रह का दोष लग जाने पर उसकी शुद्धि तथा अपरिग्रह वृत्ति की प्रेरणा के लिए उपयोगी होने से उपादेय हैं । पावसुत -- २६ प्रकार के पापश्रुत हैं । वे इस प्रकार हैं - ( १ ) भौम (२) उत्पात, (३) स्वप्न, (४) अन्तरिक्ष, (५) अंग, (६) स्वर, (७) लक्षण और (७) व्यञ्जन । इन आठ निमित्त शास्त्रों के सूत्र, वृत्ति और वार्तिक के भेद से २४ भेद हो जाते हैं । विकथानुयोग, विद्यानुयोग, मंत्रानुयोग, योगानुयोग और अन्यतीर्थिक प्रवृत्तानुयोग --ये ५ पूर्वोक्त २४ भेदों के साथ मिलाने से २६ भेद पापश्रुत के होते हैं । संक्षेप में इनके लक्षण इस प्रकार हैं ( 2 ) भौमशास्त्र - जिसमें भूगर्भ एवं भूविकारभूकम्प आदि का वर्णन है । (२) उत्पात शास्त्र - रुधिरवृष्टि आदि उत्पात के फलों का निरूपण करने वाला शास्त्र । ( ३ ) स्वप्न शास्त्र - जिसमें स्वप्नफलों का वर्णन है । ( ४ ) अन्तरिक्ष शास्त्र - आकाश में होने वाले ग्रहण आदि के फल का वर्णन करने वाल शास्त्र । ( ५ ) अंग शास्त्र - शरीर के अवयवप्रमाण तथा अंगस्फुरण ( फड़कना ) आदि के फल का जिसमें विवेचन है । ६ ) स्वरशास्त्र जीव- अजीव के द्वारा होने वाली आवाज पर से फल का निरूपण करने वाला शास्त्र । ( ७ ) लक्षण शास्त्र - शरीर के लांछनों-लक्षणों (चिह्नों) को देखकर फल का निरूपण करने वाला शास्त्र । (८) व्यंजन शास्त्र - तिल, मस आदि व्यंजनों के फल का कथन करने वाला शास्त्र । इन निमित्त शास्त्रों के सूत्र, वृत्ति और वार्तिक के भेद से २४ भेद हो जाते हैं । (२५) विकथानुयोग - अर्थ और काम पुरुषार्थ के प्रतिपादक कामन्दक और वात्स्यायन आदि शास्त्रों को विकथानुयोग कहते हैं । (२६) विद्यानुयोग - रोहिणी आदि विद्याओं के साधने का विधान करने वाला शास्त्र विद्यानुयोग है । (२७) मंत्रानुयोग — चेटक, १ - कहीं कहीं २६ पापश्रतों के सम्बन्ध में निम्नोक्त गाथा मिलती है"अट्ठगनिमित्ताइं दिव्वु १ प्पायं२ तलिक्ख ३ भोमं४ च । सुमिण सर६ वंजण ७ लक्खणे, एक्किक्कं पुण तिविहं२४ ॥ गंधव्व२५ नट्ट२६ वत्थु २७ तिगिच्छ २= धणुवेयसंजुत्त २६ ।" पूर्वोक्त २४ के अतिरिक्त गान्धर्व, नाट्य, वास्तु, चिकित्सा और धनुर्वेद, ये ५ और हैं। -सम्पादक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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