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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
से ये ज्ञ ेय हैं । कई आचार्य इसके बदले २४ देवाधि देव तीर्थंकर मानते हैं । कहा भी है - चउवीस देवा केइ पुण बिंति अरिहंता । अपरिग्रह साधना के लिए अत्यन्त प्रेरणा दायक होने से अरिहन्त देव ज्ञेय और उपादेय हैं ।
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भावणा - पांच महाव्रतों की पच्चीस भावनाएँ होती हैं । वे इस प्रकार हैं५ अहिंसा महाव्रत की, ५ सत्य महाव्रत की, ५ अचौर्य महाव्रत की, ५ ब्रह्मचर्यं महाव्रत की और ५ अपरिग्रह महाव्रत की । इन पच्चीस भावनाओं का उल्लेख इसी शास्त्र में प्रसंगवश किया गया है, इसलिए विशिष्ट स्पष्टी करण करने की आवश्यकता नहीं । ये पच्चीसों भावनाएँ अन्तरंग और बाह्य दोनों प्रकार के परिग्रहों से साधक की रक्षा करने में उपयोगी होने से उपादेय हैं ।
उद्दे सा -- दशा कल्प और व्यवहार के कुल मिलाकर २६ उद्देश या उद्देशन काल हैं । अर्थात् १० उद्देश दशाश्रुत स्कन्ध के हैं, ६ उद्देश बृहत्कल्प के हैं और १० उद्देश व्यवहार सूत्र के हैं । इन तीनों के उद्देश कुल मिलाकर २६ होते हैं । ये अन्तरंग परिग्रह की निवृत्ति में सहायक हैं । इसके प्रमाण के लिए निम्नोक्त गाथा प्रस्तुत है—
'दस उद्दे सणकाला दसाण, छच्चेव होंति कप्पस्स । दस चेव यववहारस्स, होति सव्वेवि छव्वीसं ॥
गुणा - अनगार (साधु) के २७ गुण होते हैं - ५ महाव्रत, ५ इन्द्रियों का निग्रह, ४ कपायों का त्याग, भावसत्य, करण सत्य, योग सत्य ( मन-वचन-काया की एकरूपता सत्यता ), क्षमा, वैराग्य ( आसक्ति का अभाव ), मनवचन काया का निरोध, ज्ञान-दर्शन- चारित्र की सम्पन्नता, वेदनादि का सहन करना और मारणान्तिक कष्ट ( उपसर्ग) समभाव से सहना । ये २७ गुण अन्तरंग परिग्रह से साधुजीवन की रक्षा के लिए उपयोगी होने से उपादेय हैं ।
पकप्पा - आचार प्रकल्प २८ प्रकार का होता है । यहाँ आचार और प्रकल्प दो शब्द हैं । आचार से आचारांग सूत्र के दोनों श्रुत स्कन्धों के २५ अध्ययन तथा प्रकल्प से निशीथकल्प के ३ अध्ययन ग्रहण किये गए हैं। आचारांग सूत्र के प्रथम श्रुत-स्कन्ध के 8 अध्ययन इस प्रकार हैं - ( १ ) शस्त्रपरिज्ञा, (२) लोक विजय, (३) शीतोष्णीय, (४) सम्यक्त्व, (५) आवंति ( ६ ) ध्रुव, (७) विमोह, ८) उपधान श्रुत और ( 8 ) महापरिज्ञा । द्वितीय श्रुत स्कन्ध के (१) पिंडैषणा, (२) शय्या, (३) ईर्ष्या, (४) भाषा, षणा, (७) अवग्रह प्रतिमा ( ८ से १४) सात सप्तिकाएँ, विमुक्ति । निशीथकल्प के तीन अध्ययन हैं - ( १ ) उद्घातिक, (२) अनुद्घातिक और
१६ अध्ययन इस प्रकार हैं
(५) वस्त्रषणा ( ६ ) पात्र -
(१५) भावना और (१६)