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दसवां अध्ययन : पंचम अपरिग्रह-संवरद्वार
७६५ आचरण करना । इस प्रतिमा की अवधि दो मास की है। सामायिकप्रतिमा-एक देश से सावद्ययोग का त्याग करके दोनों सन्ध्याकाल में समत्वसाधना करना सामायिक प्रतिमा है । इस प्रतिमा की अवधि तीन मास की है। पौषधोपवासनिरतप्रतिमाअष्टमी, चतुदर्शी आदि तिथियों या पर्वो पर पौषधसहित उपवास करना । इस प्रतिमा की अवधि चार मास की है। दिन में ब्रह्मचर्य तथा रात्रि में अब्रह्मचर्य के परिमाण की प्रतिमा-दिन में ब्रह्मचर्य का पूर्ण पालन करना तथा रात्रि में भी मैथुन-सेवन का परिमाण करना । इस प्रतिमा की अवधि ५ मास की है। दिन में और रात्रि में पूर्ण ब्रह्मचर्य पालन, अस्नान या रात्रिभोजनत्यागप्रतिमा-दिन और रात्रि में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना, स्नान का त्याग करना अथवा रात्रिभोजन का सर्वथा त्याग करना । इस प्रतिमा का धारक ब्रह्मचारी की तरह खुल्ली लांग की धोती पहनता है, दिन में भी प्रकाशयुक्त स्थान में आहार करता है। इस प्रतिमा की अवधि ६ मास की है । सचित्ताहारपरिज्ञात-त्याग प्रतिमा-सचित्त (अप्रासुक) आहार का त्याग करना । इस प्रतिमा की अवधि ७ मास की है। आरम्भत्यागप्रतिमा-सब प्रकार के आरम्भों का त्याग करना चाहिए । इस प्रतिमा की अवधि ८ मास की है। प्रेष्यत्यागप्रतिमा-आरंभजनक कार्यों को दूसरों (नौकरों आदि) से भी करवाने का त्याग करना । इस प्रतिमा के पालन की अवधि नौ मास है । उद्दिष्टत्याग प्रतिमा-अपने उद्देश्य से बने हुए आहारादि का भी त्याग करना। इस प्रतिमा का धारक श्रमणोपासक अपने निमित्त से बने हुए आहारादि को भी ग्रहण नहीं करता । उस्तरे से सिरमुण्डन करता है या चोटी रखता है । इस प्रतिमा का कालमान १० मास है। श्रमणभूत: प्रतिमा-इस प्रतिमा का साधक श्रावक श्रमण की तरह रहता है, साधु की तरह सभी क्रियाएं करता है, चोलपट्टा बांधता है, चादर रखता है, सिरमुडन करता है या लोच करता है। इस प्रतिमा का कालपरिमाण जघन्य एक, दो या तीन दिन का है, तथा उत्कृष्ट ११ मास है।
इन ग्यारह श्रावकप्रतिमाओं को उत्तरोत्तर धारण करने वाले श्रमणोपासक को पूर्व-पूर्व प्रतिमाओं में गृहीत नियमों एवं क्रियाओं का सर्वथा पालन करना अनिवार्य है।
बारस य भिक्खुपडिमा-भिक्ष ओं की बारह प्रतिमाएं हैं, जिनका वर्णन हम अहिंसा संवरद्वार में कर आए हैं । ११ उपासक प्रतिमाएँ और १२ भिक्ष प्रतिमाएं अन्तरंगपरिग्रह के त्याग में सहायक होने से उपादेय हैं। .