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________________ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र किरियाठाणा - तेरह क्रिया स्थान हैं । कर्मबन्धन की कारणभूत चेष्टा क्रिया कहलाती है । क्रियाओं के स्थान यानी भेदों को क्रियास्थान कहते हैं । निम्नलिखित गाथा इस सम्बन्ध में प्रस्तुत है— ७६६ 'अट्ठाऽट्ठा हिंसा कहा दिट्ठी य मोसन दिन्नय । अज्झप्पमाणमित्तं मायालोमेरियावहिया ॥' 1 अर्थात् -- '१ अर्थक्रिया, २ अनर्थक्रिया, ३ हिंसाक्रिया, ४ अकस्मात् क्रिया, ५ दृष्टि विपर्यासा क्रिया, ६ मृषावादक्रिया, ७ अदत्तादानक्रिया ८ अध्यात्मक्रिया, ६ मानक्रिया, १० अमित्रक्रिया, ११ मायाक्रिया, १२ लोभक्रिया और १३ ईर्यापथिकी क्रिया ।' अब हम क्रमशः इनका लक्षण स्पष्ट करते हैं अर्थदण्ड क्रिया- अपने शरीर, स्वजन, स्वजाति या राज्याभियोग आदि के लिए स-स्थावर प्राणियों में से किसी को प्रयोजनवश हिंसारूप दण्ड देना अर्थदण्ड क्रिया है । अनर्थ दण्ड क्रिया - बिना ही प्रयोजन के अज्ञान, मोह या द्वेषवश बिच्छू, चूहे, आदि किसी भी त्रस या स्थावर प्राणी को हिंसारूप दण्ड देना अनर्थ दण्ड क्रिया है । हिंसा दण्ड क्रिया – यह सांप आदि दुष्ट है या यह व्यक्ति दुष्ट या वैरी है; इसने मुझे या मेरे अमुक सम्बन्धी को मारा था, मारता है या भविष्य में मारेगा इस इरादे से हिंसा रूप में दण्ड देना हिंसादण्ड है । अकस्माद् दण्ड क्रिया – मृग, पक्षी या सांप आदि किसी दूसरे प्राणी को मारने के इरादे से लाठी, डंडा, बाण या पत्थर फेंका, लेकिन वह बीच में ही किसी दूसरे के लग गया और उसकी मृत्यु हो गई या उसे चोट पहुंची; तो वहां अकस्माद् दण्ड क्रिया होती है । दृष्टि विपर्यासा क्रिया – किसी मित्र, स्नेही या निर्दोष को शत्रु, द्वेषी या दोषी समझ कर मार डालना दृष्टिविपर्यासा क्रिया है । मृषा दण्ड क्रिया — अपने लिए, दूसरों के लिए या दोनों के लिए जहां असत्य बोलने से हिंसा होती है, वहां मृषा दण्ड क्रिया होती है । अदत्तादान दण्ड क्रिया स्व, पर या उभय के लिए की गई चोरी के निमित्त से हिंसा होती है, वहां अदत्तादान दण्ड क्रिया होती है । अध्यात्म क्रिया- किसी भी बाह्य निमित्त के बिना अकारण ही मन में किसी के प्रति क्रोध, द्वेष, घृणा, अहंकार, माया या शोक आदि भाव उत्पन्न होने से जो भावहिंसा होती है, उसे अध्यात्म दण्ड क्रिया कहते हैं । मान प्रत्यय क्रिया - जाति, कुल, बल, रूप, ज्ञान, तप, ऐश्वर्य और लाभ आदि के मद-अहंकार से मत्त होकर दूसरों की निन्दा करना, झिड़कना, लोगों के सामने नीचा दिखाना, ऐसी क्रिया मान प्रत्यय क्रिया कहलाती है। मित्र द्वेषं प्रत्यय क्रिया - अपने माता-पिता, भाई, मित्र आदि स्वजनों के जरा से अपराध पर बहुत बड़ा तीव्र दण्ड
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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