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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
- नवचेव य बंभचेरवयगुत्ती-खेत की बाड़ के समान ब्रह्मचर्य की रक्षा करने वाली ये नौ गुप्तियाँ हैं । एक गाथा के द्वारा इन्हें प्रस्तुत करते हैं
'वसहि-कह-निसिज्जिदिय कुड्डंतर पुब्धकीलिए।
पणीए अइमायाहार विभूसणा य णव बंभगुत्तीओ॥' __ अर्थात्-१-स्त्री-पशु-नपु सक के संसर्ग से रहित एकान्त स्थान में निवास करना, २- स्त्री आदि की कथावार्ता न करना, ३-एकान्त में स्त्री के साथ न उठना-बैठना, ४–इन्द्रिय निग्रह करना, ५-दीवार की ओट में रहकर ब्रह्मचर्य घातक कामक्रीड़ा आदि क्रियाओं का न देखना, न सुनना ६-गृहस्थ (पूर्व) अवस्था में अनुभूत कामक्रीड़ा आदि का स्मरण न करना, ७–इन्द्रिय दर्पकारक स्वादिष्ट गरिष्ठ पदार्थों का सेवन न करना, ८-अतिमात्रा में आहार न करना, ६-शरीर को विभूषित न करना । ये ब्रह्मचर्य की रक्षा करने वाली गुप्तियाँ (बाड़ें) हैं । वेदोदय से समुद्भूत अब्रह्मचर्य रूप अन्तरंग परिग्रह को रोकने में ये नौ गुप्तियाँ सहायक हैं, इसलिए अपरिग्रहवृत्ति के लिए उपादेय हैं।
दसप्पकारे य समणधम्मे-दस प्रकार का श्रमणधर्म है । निम्नोक्त गाथा इसके लिए प्रस्तुत है
'खंती मद्दव अज्जव मत्ति तव-संजमे य बोधव्वे । ..
सच्चं सोयं अकिंचणं च बंभं च जइधम्मो ॥' उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम मुक्ति (त्याग-निर्लोभता) उत्तम तप, उत्तम संयम, उत्तम सत्य, उत्तम शौच, उत्तम आकिञ्चन्य (लाघव)और उत्तम ब्रह्मचर्य । इन दस धर्मों के साथ लगाया गया उत्तम शब्द यह सूचित करता है कि जो क्षमा आदि सम्यग्दर्शनसहित हैं और उत्कृष्ट हैं, वे ही श्रमणधर्मस्वरूप हैं और वे ही परम्परा से मोक्ष के साधक होते हैं ।
एक्कारस य उवासकाणं-श्रमणोपासकों की ११ प्रतिमाएं हैं। निम्नोक्त शास्त्रीय पाठ इसके लिए प्रस्तुत है
'एक्कारस उवासंगपडिमाओ पन्नत्ताओ, तंजहा १ देसण सावए, २ कयन्वयकम्मे, (३) सामाइयकडे, (४) पोसहोववासनिरए, (५) दियाबंभयारी रत्तिपरिमाणकडे, (६) दिया वि राओ वि बंभयारी असिणाई, (अनिसाई) वियडभोई मोलिकडे (७) सचित्तपरिणाए, (८) आरंभपरिणाए, (९) पेसपरिणाए, (१०) उद्दिठभत्तपरिणाए. (११) समणभूए यावि भवइ ।'
दर्शन प्रतिमा-सम्यग्दर्शन का निरतिचार पालन करना। यह प्रतिमा एक मास की होती है। व्रतप्रतिमा-सम्यक्त्वसहित अणुव्रतों का ग्रहण करके तदनुसार