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________________ नौ । अध्ययन : ब्रह्मचर्य -संवर ७२३ अतः मनोद्वार पर सुध्यानरूपी सुदृढ कपाट लगा दिया जाय तो वह अन्दर नहीं घुस सकेगा । किन्तु इसके साथ ही एक बात और जरूरी है । वह यह है कि उस सुध्यानरूपी कपाट के मजबूत अर्गला (आगल) लगानी चाहिए। अतः उस कपाट पर अध्यात्म-आत्मानुभव के उपयोग की अर्गला लगाये जाने का संकेत शास्त्रकार ने किया है । इस प्रकार यहाँ तक ब्रह्मचर्य धन की सुरक्षा के लिए सभी उपाय बताए गए हैं। अगर साधक सुरक्षा के इन उपायों को जीवन में आजमाए तो ब्रह्मचर्य की सुरक्षा में कोई संदेह नहीं रह जाता। ___ ब्रह्मचर्य का महत्त्व ब्रह्मचर्य का मानव जीवन में क्या स्थान है ? इस बात को जान लेने पर भी साधु जीवन में ब्रह्मचर्य कितना महत्त्वपूर्ण है ? उसके बिना साधु जीवन की कितनी हानि है ? इस बात को आगे शास्त्रकार निम्नोक्त पंक्तियों द्वारा व्यक्त करते हैं-'सन्नद्धबद्धो .......विणयसोलतव नियम गुणसमूह।.... एवमणेगा गुणा अहीणा . ... पच्चओ य ।" इन पंक्तियों का अर्थ भी हम पहले स्पष्ट कर आए हैं। इनका रहस्यार्थ खोलना आवश्यक है। ब्रह्मचर्य का एक महत्त्व यह है कि यह दुर्गति के मार्ग को अवरुद्ध अर्थात् रोक देने वाला है और प्रगति का मार्गदर्शक है । इसका तात्पर्य यह है कि ब्रह्मचारी की आत्म-परिणति प्रायः शुभ या शुद्ध रहती है । इन परिणामों से दुर्गति (नरक या तिर्यंचगति) का बन्ध कदापि नहीं होता, प्रत्युत सुगति (मनुष्यगति या देवगति) का बन्ध होता है, अथवा सिद्ध-गति को प्राप्ति होती है । इसलिए इसे दुर्गतिपथ का अवरोधक और सुगति पथ का प्रदर्शक बताया है। दूसरा महत्त्व यह है कि यह ब्रह्मचर्यव्रत 'लोकोत्तम' है । संसार में सबसे उत्तम वस्तु होने के कारण ब्रह्मचर्य की सुरक्षा का ध्यान रखना आवश्यक है। क्योंकि ब्रह्मचर्य का पालन करना अत्यन्त दुष्कर है। कहा भी है देवदाणवगंधव्वा जक्खरक्खसकिनरा । बंभयारि नमसंति दुक्करं जे करेंति तं ।। अर्थात्---देव दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर आदि सभी उस ब्रह्मचारी को नमस्कार करते हैं; जो उस दुष्करव्रत का आचरण करता है । तीसरा महत्त्व यह है कि ब्रह्मचर्य धर्मरूपी पद्मसरोवर या धर्मरूपी तालाब की सुरक्षा के लिए पाल के समान है । जैसे पाल के टूट जाने पर सुशोभित तालाब या पद्म सरोवर नष्टभ्रष्ट हो जाता है, वैसे ही ब्रह्मचर्यरूपी पाल के टूटते ही सत्यादि चारित्र-धर्म के अंग भी नष्टभ्रष्ट हो जाते हैं। साथ ही यह ब्रह्मचर्य बड़ी गाड़ी के पहिए के आरों को टिकाए रखने वाली नाभि के समान है। नाभि पहिये के बीच में लकड़ी की एक गोल चीज होती है, जिस पर पहिये के आरे टिके होते हैं । जिस प्रकार नाभि की रक्षा से आरों की रक्षा और नाभि के नाश से आरों का नाश
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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