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________________ ७०८ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र आदि मोक्ष मार्गके शेखर के समान है । (जेण सुद्धचरिएण) जिसके शुद्ध रूप में आचरण करने से मनुष्य (सुबंभणो) उत्तम ब्राह्मण, (सुसमणो) उत्तम श्रमण, (सुसाहू) अच्छा साधु (सुइसी) श्रेष्ठ ऋषि, (सुमुणी) उत्कृष्ट मुनि (भवति, हो जाता है । (स संजए) वही संयमी है, (स एव भिक्खू) वहीं भिक्षु है, (जो बंभचरं सुद्धं चरति) जो ब्रह्मचर्य का शुद्ध पालन करता है। (इमंच) तथा आगे कहे जाने वाले (रति राग दोस मोह-पवड्ढणकरं) विषयराग, स्नेहराग, द्वेष और मोह की वृद्धि करने वाले (किंमज्झ • पमायदोस पासत्थसीलकरणं) निःसार-कुत्सित मध्यमप्रमाद या प्रमाद ही मध्य है, उस प्रमाद दोष के कारण बने हुए पार्श्वस्थ-साध्वाभासों के शील-आचार का सर्वथा त्याग करे (य अम्भंगणाणि) और घी, तेल आदि से मर्दन, तेल्ल मज्जणाणि य) तथा तेल लगाकर स्नान करना, (अभिक्खणं) बारबार (कक्ख-सीस-कर चरण वदणधोवण-संवाहण-गायकम्म-परिमद्दणाणुलेवण-चुन्नवास-धूवण-सरीरपरिमंडण - बाउसिकं) कांख, सिर, हाथ, पैर, मह धोना, इनको दबवाना-दबाना, शरीर की पगचंपी कराने के रूप में गात्रपरिकर्म, सम्पूर्ण शरीर मलना, चंदनादि का लेप करना, सुगन्धित चूर्ण-पाउडर लगाना, अगरबत्ती आदि से धूप देना, शरीर को सजाना, शृंगार करना, नख, केश वस्त्रादि का संवारना आदि बाकुशिक कर्म, तथा (हसिय भणियं नट्टगोय-वाइयनडनट्टकजल्लमल्लपेच्छणवेलंबक) हंसना, बिकारयुक्त बोलना, नृत्य देखना, गीत गाना, बाजे बजाना, नट, नर्तक-नाचने वाले, रस्सी पर खेल दिखाने वाले, तथा पहलवानों और भांडों के खेल तमाशे या कुश्ती आदि देखना (य) और (जाणि) जो (सिंगारागाराणि) शृंगार रस के एक तरह से घर हैं (अन्नाणि य एवमादियाणि) दूसरी भी इसी प्रकार की जो बातें हैं, (तवसंजमबंभचेरघातोवघातियाइं) जो तपस्या, संयम और ब्रह्मचर्य का थोड़ा घात या बारबार अधिक उपघात करने वाली हैं, (बंभचेरं अणुचरमाणेणं सव्वकालं वज्जेयव्वाइ) ब्रह्मचर्य के पालन करने वाले को ये सब बातें सदासर्वदा छोड़ देनी चाहिए, इन्हें वर्जनीय समझना चाहिए।(य) तथा (इमेहि) आगे कहे जाने वाले (तव नियमसील जोहिं)तप, नियम, और शील के व्यापारों-प्रवृत्तियों द्वारा (निच्चकालं) नित्य निरंतर (अंतरप्पा भावेयव्वो) अन्तरात्मा भावित-संस्कारित करना चाहिए । (किं ते ?) वे व्यापार या प्रवृत्तियाँ कौन-कौन-सी हैं ? (अण्हाणक-दंतधावण-सेयमलजल्लधारणं मूणवय केसलोए य खमदमअचेलग-खुप्पिवास-लाघव-सीतोसिणकट्ठसेज्जा भूमिनिसेज्जा-परघरपवेस-लद्धावलद्ध-माणावमाण - निंदण-दंसमसगफास-नियम-तव-गुणविणय-मादिरहि) स्नान न करना, दांत साफ न करना, पसीना, मैल या शरीर
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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