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________________ ७०६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (सीतोदा चेव निन्नगाणं) नदियों में सीतोदा नदी की तरह प्रवर है ब्रह्मचर्य, (उदहीसु जहा सयंभूरमणो) समुद्रों में जैसे स्वयंभूरमण समुद्र श्रेष्ठ है वैसे ही ब्रह्मचर्य सबमें श्रेष्ठ है। (रुयगवरे चेव मंडलिकपव्वयाणं मांडलीक पर्वतोंमें जैसे रुचकवर पर्वत श्रेष्ठ है वैसे ही ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है; (पवरो एरावण इव कुजराणं) हाथियों में इन्द्र के श्रेष्ठ ऐरावत हाथी की तरह महान् ब्रह्मवत है । (सीहोव्व जहा मिगाणं) सब पशुओं में सिंह की तरह ब्रह्मचर्य सब में प्रधान है; (पवरे पवकाणां चेव वेणुदेवे) श्रेष्ठ सुपर्णकुमार देवों में वेणुदेव के समान (धरणो जह पण्णगइंदराया) नागकुमार देवों में श्रेष्ठ धरणेन्द्र के समान है, (कप्पाणं बंभलोए चेव) कल्प देवलोकों में उत्तम पांचवें ब्रह्मलोक के समान यह श्रेष्ठ है। (य) तथा (सभासु जहा सुहम्मा) सभाओं में श्रेष्ठ जैसे सुधर्मा सभा है, वैसे ही ब्रह्मचर्य सर्वश्रेष्ठ है (ठितिसु लवसत्तमव्व) आयुष्य में अनुत्तर-विमान वासी देवों को ७ लव आयु (पवरा) श्रेष्ठ है, (दाणाणं) आहारादि - दान में (अभयदाणं चेव) अभय दान के समान है, (किमिराओ चेव कंबलाणं) कंबलों में कृमिराग नामक रत्न कंवल श्रेष्ठ होता है, उसी तरह ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, (संघयणे चेव वज्जरिसभे) यथा संहननों में वज्रऋषभ नाराच संहनन उत्तम होता है, तथैव ब्रह्मचर्य भी उत्तम है, (संठाणे चेव समचउरंसे) संस्थानों में समचतुरस्र संस्थान श्रेष्ठ है, वैसे ही ब्रह्मचर्य है, (झाणेसु य परमसुक्क ज्झाणं) ध्यानों में सर्वोत्तम परमशुक्लध्यान होता है, तथैव सभी व्रतों में ब्रह्मचर्य प्रवर है (णाणेसु परमकेवलं सुसिद्ध) ज्ञानों में परम केवल ज्ञान के समान श्रेष्ठ रूप में प्रसिद्ध ब्रह्मचर्य है । (लेस्सासु परमसुक्कलेस्सा) षट् लेश्याओं में सर्वोत्तम परमशुक्ललेश्या के समान ब्रह्मचर्य है, (मुणीणं चेव तित्थयरे जहा) मुनियों में तीर्थंकर के समान ब्रह्मचर्य उत्तम है। (वासेसु महाविदेहे जहा) सात क्षेत्रों में महाविदेह क्षेत्र के समान (गिरिराया मंदरवरे चेव) पर्वतों में मन्दराचल-सुमेरु पर्वत के समान, (वणेसु नंदणवणं जहा) वनो में नन्दन वन के समान, पवरं) श्रेष्ठ है, (दुमेसु जंबू जहा) वृक्षों में जैसे जंबू वृक्ष श्रेष्ठ है, तथैव व्रतों में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ है, (सुदंसण वीसुयजसा) जंबू वृक्ष का प्रख्यातयशवाला दूसरा नाम सुदर्शन है (य) और (जिए) जिसके, (नामेण) नाम से (अयंदीवो) यह द्वीप जम्बू द्वीप कहलाता है। जहा जैसे (तुरगवती) अश्वपति, (गयवती) गजपति, (रहवती) रथपति (नरवती) नरपति (राया) राजा (वीसुए चेव) प्रख्यात होता है, वैसे ही व्रतों में यह विख्यात है। (जहा रहिए राया महारहगते चेव) महान् रथ पर
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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