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________________ नौवां अध्ययन : ब्रह्मचर्य-संवर ७०५ यह पाल के समान है (महासगडअरगतुंबभूयं) बड़े गाड़े के आरों के लिए आधारभूत धुरी की तरह यह भी क्षमा आदि गुणों के लिए धुरी रूप है, (महाविडिमरुक्खक्खंधभयं) आश्रितों के लिए परम उपकारी विशाल वृक्ष के स्कन्ध की तरह यह भी परमोपकारी धर्म रूप वृक्ष के स्कन्ध के समान है; (महानगरपागारकवाडफालिहभूयं) विविध सुख के कारणभूत धर्मरूपी महानगर के परकोटे के कपाट की अर्गला के समान यह भी रक्षक है, (रज्जुपिनद्ध इव इंदकेतू) रस्सी से बंधी हुई इन्द्रकेतु-महोत्सव की ध्वजा के समान यह ब्रह्मचर्य है। (विसुद्धणेगगुणसंपिणद्ध) धैर्य आदि अनेक विशुद्ध गुणों से यह अनुस्यूत है, (जंमि य भग्गंमि) जिस (ब्रह्मचर्य) के भंग होने पर (सहसा) अचानक (सत्वं) समस्त (विणयसीलतव-नियम गुण-समूह) विनय, शील, तप, नियम आदि गुणसमूह, (संभग्गमद्दिय - मत्थिय-चुन्निय-कुसल्लिय-पव्वयपडिय-खंडिय-परिसडिय-विणासियं) घड़े के समान फूट जाते हैं, दही की तरह मथ जाते हैं, चने की तरह पिस जाते हैं, वाण से बोंधे हुए शरीर की तरह वींधे जाते हैं, पर्वत से गिरे हुए पाषाण की तरह चूरचूर हो जाते हैं, महल के शिखर से गिरे हुए कलश आदि की तरह नीचे गिर जाते हैं, लकड़ी के डंडे के समान टूट जाते हैं, कोढ़ आदि से सड़े हुए शरीर के समान सड़ जाते हैं, अग्नि से भस्म हुई लकड़ी की राख के समान वे अपने अस्तित्व को खो बैठते हैं, (तं). इस प्रकार का वह (भगवंतं) भगवान् (बंभं) ब्रह्मचर्य (गहगणनक्खत्ततारगाणं) ग्रहगणों, नक्षत्रों और तारों के बीच में (जहा उडुपती वा) जैसे चन्द्रमा शोभायमान होता है, वैसे ही दूसरे व्रतों, नियमों आदि में ब्रह्मचर्य शोभायमान होता है । (मणिमुत्तसिलप्पवालरत्तरयणागराणं च जहा समुद्दो) मणि, मोती, शिला, मूंगा, पद्मराज आदि लाल रत्नों को उत्पत्ति का स्थानभूत जैसे समुद्र है, वैसे ही ब्रह्मचर्य अनेक गुणरत्नों का समुद्र है । तथा (वेरुलियो चेव जहा मणीण) मणियों में जैसे वैडूर्यमणि श्रेष्ठ होती है वैसे ही ब्रह्मचर्य व्रत है; (भूसणाणं) आभूषणों में (मउड़ो चेव) मुकुट की तरह यह है (वत्थाणं चेव खेमजुयल) इसी प्रकार वस्त्रों में बारीक चिकने रुई के बने वस्त्र उत्तम होते हैं वैसे ही ब्रह्मचर्य भी है, (अरविंदं चेव पुप्फजेट्ठ) फूलों में ज्येष्ठ जैसे अरविन्द फूल है, वैसे ही ब्रह्मचर्य भी सब में ज्येष्ठव्रत है; (गोसीसं चेव चंदणाणं) चन्दनों में गोशीर्ष चादन की तरह प्रधान यह ब्रह्मचर्य है, (हिमवंतो चेव ओसहीणं) औषधियों के लिए हिमवान् पर्वत की तरह यह ब्रह्मचर्य है, ४५
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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