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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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गुण हैं, उनसे युक्त है, (हिमवंतमहंततेयमंथ ) हिमवान् पर्वत से भी महातेजस्वी है, (पसत्थगंभीर थिमितमज्झ ) जिसके पालन करने से साधकों का मध्य-अन्तःकरण प्रशस्तउदार, गम्भीर और स्थिर होता है, (अज्जवसाहुजणांचरियं) सरलता से सम्पन्न साधुजनों द्वारा आचरित है, (मोक्खमग्गं) मोक्ष का मार्ग है, (विसुद्धसिद्धिगति निलयं ) राग कालुष्य से रहित विशुद्ध सिद्धिरूपगति का स्थान है, ( सासयं) शाश्वत - नित्य है, ( अव्वाबाह) क्षुधा आदि बाधा - पीड़ाओं से रहित है, ( अपुणम्भवं ) इसके पालने से से पुन: लौटना, जन्म लेना नहीं होता; (पसत्थं वह प्रशस्त – मंगलमय है, (सोमं ) सौम्यरूप है, (सुभं ) शुभ है अथवा (सुखं) सुखरूप है, (सिवं ) उपद्रवरहित या कल्याण रूप है, (अचलं) स्थिर है, (अक्खयकरं ) पूर्णिमा के चन्द्र की तरह अक्षत है, अतएव आह्लादकर है अथवा अक्षय- मोक्षपद का कारण है, ( जतिवरसारक्खितः) उत्तम साधुओं द्वारा इसकी सुरक्षा की गई है, (सुचरिथं) यह श्रेष्ठ आचरण है, (नवरि) केवल ( मुणिवरेहिं ) प्रधान मुनिवरों द्वारा (सुसाहियं) इसकी अच्छी तरह साधना की गई है, ( महापुरिसधीर सूरधम्मियधितिमताण ) उत्तम गुणों से युक्त महापुरुषों, धारियों में अत्यन्त महासत्वशाली पुरुषों, धार्मिकों एवं धृतिमान् पुरुषों का (य) ही यह व्रत (साविसुद्ध ) सदा विशुद्ध - दोषों से रहित होता है, यह (भळां) कल्याणरूप है, (सव्वभव्वजणाणुचिन्न ) समस्त भव्यजनों द्वारा आचरित है । ( निस्संकियं ) यह शंकारहित है, इसमें शंका को कोई स्थान नहीं, ( निब्भयं ) इसमें भय को भी अवकाश नहीं, ( नित्त सं ) तुषरहित चावल के समान सारयुक्त है ( निरायासं) इसके पालन में कोई श्रम या खेद नहीं होता, (निरुवलेनं) यह आसक्ति या मलिनता के लेप से रहित है, (निव्व तिघरं ) यह चित्त की शान्ति का घर है, ( नियम निप्पकंपं) यह निश्चय से frosम्प अपवाद - अतिचाररहित है अथवा इसका नियम अटल होता है, अतः अविचल है, (तपसंजम मूलदलियणेम्मं ) यह तप और संयम के मूलद्रव्य के समान है, (पंचमहव्वयसुरक्खियं) पांच महाव्रतों में इसका अच्छी तरह रक्षण जतन अत्यन्त आवश्यक है, ( समितिगु तिगुत्तं ) यह पांच समितियों तथा तीन गुप्तियों से सुरक्षित है, ( झाणवरकवाडसुकयं ) उत्तम ध्यानरूपी कपाट से इसका भलीभांति जतन किया जाता है, (अज्झप्पदिनफलिहं ) ध्यानरूपी कपाट को सुदृढ़ करने के लिए दूसरी अध्यात्म की अनुभूतिरूपी अर्गला है । ( संनद्धोच्छइयदुग्गइपहं) जिसके द्वारा दुर्गति का पथ बांधा और रोका जाता है । ( सुगतिपहदेसग ) यह सुगति का पथप्रदर्शक है, (च) और (लोग त्तमं ) लोक में उत्तम, ( इणं वयं ) यह व्रत (पउ मसरतलागपालिभूयं) खिले हुए कमलों वाले पद्मसरोवर और तडागरूपी धर्म की रक्षा के लिए
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