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________________ आठवां अध्ययन : अचौर्य-संवर ६८६ सर्वदा पापानुष्ठान स्वयं करने और दूसरों से करवाने की पापक्रियाओं से निवृत्त होकर दत्तानुज्ञान वस्तु को ग्रहण करना ही पसंद करती है। तीसरी शय्यापरिकर्मवर्जनरूप शय्यासमितिभावना है, जो इस प्रकार है–साधु को चौकी, पट्टे, शय्या-मकान और तृणादि के बिछौने के निमित्त स्वयं वृक्ष नहीं काटने चाहिए और न वृक्षों का छेदन-भेदन करवा कर शय्या मकान तैयार करवाना चाहिए। साधु जिस गृहस्थ के उपाश्रय स्थान में निवास करे, वहीं पर शय्या की गवेषणा करे। शय्या के लिए ऊबड़खाबड़ विषम जगह को समतल न करे । हवा को बंद करने और उसके आने के लिए उत्सुकता न बताए, न डांस और मच्छरों के उपद्रव से घबराए, डांस, मच्छर आदि को भगाने के लिए आग न जलाए, न धुंआ करे। इस प्रकार पृथ्वीकायादि जीवों की यतना करने में प्रवीण, प्राणतिपात आदि आश्रवद्वारों के निरोधरूप संवर में प्रवर, कषायों पर विजय और इन्द्रियों के दमन से सम्पन्न, चित्त में स्वस्थता-समाधि से युक्त एवं परिषह, उपसर्ग आदि के सहन करने में धोर साधु केवल मन में मनोरथ करके ही नहीं, अपितु काया से भी इस समिति का स्पर्श - आचरण करता हुआ सतत आत्मावलम्बीअध्यात्म-ध्यान में तल्लीन व समितियुक्त होकर अकेला चारित्रधर्म का आचरण करे। इस प्रकार शय्यासमिति के योग से अर्थात् शय्या के बारे में निर्दोष प्रवत्ति करने से संस्कारसम्पन्न हुई साधु को अन्तरात्मा नित्य दोषदृष्ट आचरण के स्वयं करने-कराने से जनित पापकर्म से मुक्त होकर दत्तानुज्ञात वस्तु को ग्रहण करने की रुचि वाली होती है। चौथी भावना अनुज्ञातभक्तादि भोजन लक्षणा साधारणपिंडपात (त्र)लाभसमिति भावना है । उसका स्वरूप इस प्रकार है-संघ के सर्वसाधारण साधुओं के लिए सांघाटिक–सामूहिक भोजन-वस्त्र-पात्र आदि वस्तुएँ विधिपूर्वक प्राप्त होने पर साधु को उनका उपभोग सम्यविधिपूर्वक करना चाहिए। प्राप्त सामूहिक भोजन में से साग और दाल ही अधिक न खाए, बढ़िया स्वादिष्ट चीज भी पहले न खाए,कौर आदि को जल्दी-जल्दी न निगले और न कौर को जल्दी-जल्दी मुँह में डाले,चंचलतापूर्वक शरीर के अवयवों को हिलाते-डुलाते हुए भोजन न करे, एकदम भोजन पर टूट न पड़े,दूसरों को पीड़ा पहुँचाने वाले एवं सावद्य-पापयुक्त भोजनादि का सेवन न करे । साधारण अर्थात् सामूहिक ४४
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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