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आठवां अध्ययन : अचौर्य-संवर
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बहुत, (च) अथवा, (अणु) छोटी, (वा) अथवा, ( थूलगं ) मोटी हो, ( उग्गहंमि अदिष्णमि) यथोचित आज्ञा के लिए बिना, (गिहिउ ) ग्रहण करना, (जे) थोड़ा-सा भी ( न कप्पइ ) योग्य नहीं है । (हणिहणि) प्रतिदिन साधु को ( उग्गहं) उपाश्रय में रहने वाली वस्तु (अणुन्नवियं) आज्ञा प्राप्त करके, (गेण्हियव्वं ) ग्रहण करना चाहिए । सव्वंकालं) सदा, (अचियत्तघरप्पवेसो) अप्रीति रखने वाले के घर में प्रवेश, (अचियतं भत्तपाणं) अप्रीति रखने वाले का अन्नपानी (अचियत्तपीठफलगसेज्जासंथ।रकवत्थपत्तकंबल - दंडग-रयहरण-निसेज्ज- चीलपट्टगमुहपोत्तियपायपुर छणाइ भायणभंडोव हिउवकरणं) अप्रीति रखने वाले के वस्त्र, चौकी, पट्टा, शय्या, संस्तारकबिछौना, वस्त्र, पात्र, कंबल, दंड, रजोहरण, आसन, चोलपट्टा, मुखवस्त्रिका, पैर पोंछने का वस्त्रखण्ड आदि धर्मोपकरणरूप सामग्री ( परपरिवाओ ) दूसरे की निन्दा ( परस्स दोसो) दूसरों के दोषों का प्रकट करना, (परववए सेण) आचार्य, रोगी आदि के बहाने से, (जं) जो वस्तु (गेहइ ) ग्रहण की जाती है, (च) तथा ( परस्स) दूसरे की ( जं) जो वस्तु का ( सुकयं ) सुकृत्य या उपकार का काम, ( नासेइ) नाश करता है, (य) तथा ( दाणस्स ) दान में, ( अंतराइयं) विघ्न डालना, (दाणविप्पणासो) दान का अपलाप करना (च) तथा (पेसुनं चेव ) चुगली करना और (मच्छरित्त ) मात्सर्य -
- ईर्ष्या इन सबका ( वज्जेयव्वो) त्याग करना - - छोड़ना चाहिए। ( जे विय) जो भी ( पीठ फलगसेज्जा - संथारगवत्थपाय कंबलमुहपोत्तिय पायपोंछणादि भायणभंडोवहिउवकरणं ) चौकी, पट्टा, शय्या, बिछौना, वस्त्र, पात्र, मुखवस्त्रिका और पैर पोंछने का टुकड़ा आदि पात्र, बर्तन, कंबल तथा वस्त्रादि सामग्री और आहार में (असंविभागी ) ठीक वितरण न करने वाला ( असंगहरुई) गच्छ की उपकारक प्राप्त वस्तुओं का संग्रह नहीं करने वाला, (तवतेणे) तप का चोर, (य) तथा, ( वइतेणे) वाणी का चोर, ( रूवतेणे) रूप का चोर ( चेव ) और (आयारे) आचार और ( भावतेणे य) भावों का चोर है । ( सहकरे ) रात्रि को उच्चस्वर से स्वाध्याय, आदि करने वाला, ( झंझकरे) फूट डालने वाला, ( कलहकरे ) झगड़ा करने वाला, (वेरकरे ) वैरभाव बढ़ाने वाला, (विकहकरे ) विकथा करने वाला, ( असमाहिकरे ) अशान्ति पैदा करने वाला, (सया अप्पमाणभोई) हमेशा प्रमाण से अधिक भोजन करने वाला, ( सततं अणुबद्धवेरे) लगातार निरन्तर वैर बांधे रखने वाला, (य) और ( तिव्वरोसी) तीव्र क्रोध करने वाला, (तारिसए) इस प्रकार का, (से) वह मनुष्य ( इणं) इस, (वयं) व्रत को ( नाराहए ) आराधना नहीं कर सकता । ( अह पुणाई ) तो फिर, ( के रिसए) कौन - सा मनुष्य, ( इणं) इस, (वयं) व्रत की, ( आहए ?) आराधना - साधना कर सकता है ? (से) वह मनुष्य, (जे) जो, ( उवहि