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________________ ६६६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र पदान्वयार्थ—(सुन्वता !) सुन्दर व्रत वाले ! (जंबू). हे जम्बू ! (ततियं) तीसरा (दत्तमणुण्णायसंवरो नाम) दत्त-दिये हुए अन्नादि तथा अनुज्ञात-आज्ञा दिये हुए पीठ-फलकादि इस प्रकार 'दत्तानुज्ञात' नामक संवरद्वार (होति) है, यह, (महन्वतं) महान व्रत है, (गुणव्वतं) गुणों-इहलौकिक-पारलौकिक उपकारों-का कारणभूत व्रत है, (परदव्वहरणपडिविरइकरणजुत्त) जो पराये द्रव्य-पदार्थ के हरण से निवृत्तिरूप क्रिया से युक्त है, (अपरिमियमणंततण्हाणु गयमहिच्छमणवयणकलुस-आयाणसुनिग्गहियं) जिसमें असीम, अनन्त तृष्णा से युक्त तथा बड़ी-बड़ी इच्छाओं वाले मन और वचन से पापजनक परद्रव्य के ग्रहण का भलीभांति निग्रह किया गया है। (सुसंजमियमणहत्थ-पायनिभियं) जिसमें संयमित मन द्वारा परद्रव्य ग्रहण करने में प्रवृत्त हुए हाथपैर को रोक लिया गया है। (निग्गंथ) जो बाह्य और आभ्यंतर परिग्रह से रहित है, (णेट्ठिकं) समस्त धर्मों को चरमसीमा तक पहुंचा दिया है, (निरुत्त) तीर्थंकरों से वणित, (निरासवं) कर्मागमनरहित, (निन्भयं) निर्भय (विमुत्त) लोभरहित, (उत्तमनरवसभपवरबलवगसुविहितजणसम्मतं) जो सर्वोत्तम मनुष्य,अत्यन्त बलवान् तथा शास्त्रोक्त विधि से आचरण करने वाले साधुजनों द्वारा सम्मत है, (परम साधुधम्मचरणं) जो उत्कृष्ट साधुओं का धर्माचरण है, (य) और (जत्थ) जिसमें (गामागरनगरनिगमखेडकव्वडमडंवदोणमुहसंवाहपट्टणासमगयं च) गांव, खान, नगर, वणिक जनों का व्यवसायिक स्थान-मंडी, धूल के कोट वाले नगर, कर्बट-कस्बे, चारों तरफ ढाई-ढाई कोस तक कोई बस्ती न हो, ऐसे गांव या नगर, समुद्र के किनारे का शहरबंदरगाह, दुर्ग, (महानगर) पट्टन और आश्रम में पड़ी हुई (मणिमुत्तपिलप्पवालकसदूसरययवरकणगरयणमादि) मणि, मोती, शिला, मूगा, कांसा, दूष्य-वस्त्र, चांदी, सुन्दर सोना, रत्न आदि, (किचि दव्वं) कोई भी वस्तु (पडियं) गिरी हुई, (पम्हुट्ठ) भूली हुई, (विप्पणट्ठ) खोई हुई हो, उसे (कस्सइ) किसी को (कहेउ) कहना अथवा (गेण्हिउ) स्वयं उठा लेना (न कप्पइ) उचित नहीं है। संयमी (अहिरन्नसुवन्निकेण) चांदी और सोने का त्यागी, (समलेठुकांचणेण) पत्थर और सोने को समान समझने वाला, (अपरिग्गहसंवुडेण) धनादि परिग्रह से रहित तथा इन्द्रियों के संयमसहित, (लोगंमि) इस लोक में (विहरियव्वं) विचरण करे। (य) तथा (जंपि) जो भी (खलगतं) खलिहान में पड़ा हुआ हो, (खेत्तगतं)खेत में पड़ा हुआ हो, (दव्व जातं) कोई द्रव्य हो, (वा) अथवा (रन्नमंतरगतं) जंगल के बीच में पड़ी हुई, (पुप्फफलतयप्पवालकंदमूलतणकट्ठसक्करादि) फूल, फल, छाल, कोंपल, कंदमूल, तिनका, लकड़ी या कंकड़-पत्थर आदि (किंचि) कुछ भी वस्तु (अप्पं च) थोड़ी और अथवा (बहु)
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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