SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 668
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सातवां अध्ययन : सत्य- संवर ६२३ देवस्य इन दो सूत्रों के अनुसार अल्पारम्भ और अल्प- परिग्रह मनुष्यगति के तथा सरागसंयम, संयमासंयम, अकामनिर्जरा तथा बालतप, ये देवगति के कारण हैं । इसलिए सत्य का पालन मनुष्यगति एवं देवगति का कारण तो है ही, स्वर्ग और मोक्ष के मार्ग का भी प्रवर्तक है । उज्जयं अकुडिलं- इन दोनों पदों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है । ऋजु कहते हैं, सरल को । सरल मन से जो बोला जाता है, वह ऋजुक होता है, वही सत्य होता है । जो मायाचारपूर्वक बोला जाता है, वह वचन असत्य होता है । सरलचित्त से उच्चारण किया हुआ वचन कुटिल नहीं होता है, वही सत्य है । सरलमन की सरलता को पहिचानने में अकुटिल वचन हेतु बनता है । जिसके वचन में सरलता नहीं होती, वह सीधी-सादी या सरल-सी लगती बात को भी घुमाफिरा कर कहता है । समझना चाहिए उसके मन में कलुषितता है । इसलिए इन दोनों पदों को सांध्यसाधनभाव से परस्पर सम्बन्धित बताने के लिए साथ-साथ रखा है । भूत्थं अत्थतो विसुद्ध – जो चीज है ही नहीं, उसके विषय में कल्पना करना सद्भूतार्थ कथन नहीं होता । बास्तविक ( विद्यमान या घटित अर्थ को कहने वाला वही सत्य है । परन्तु कई दृष्टान्त या कथाएँ काल्पनिक होती हैं, वे वर्तमान में या भूतकाल में भी हूबहू घटित नहीं होतीं, फिर भी वक्ता का आशय लोगों को किसी सत्य ( तत्त्व या सिद्धान्त) को समझाना है या हृदय में उतारना है तो उसे असत्य नहीं समझना चाहिए; क्योंकि उसके पीछे प्रयोजन (अर्थ) विशुद्ध है । विशुद्ध होने के कारण इसलिए विशुद्ध प्रयोजन से बोला गया वचन अर्थतः सत्य है । अथवा किसी वक्ता का प्रयोजन लोगों को धोखा देने का नहीं था, किन्तु वाणीस्खलना के कारण एक शब्द के बजाय दूसरा शब्द मुंह से निकल गया । चूंकि वह अर्थतः शुद्ध है, इसलिए सत्य माना जाता है । उत्तम प्रयोजन ( आशय या अर्थ ) को ले कर कही जाने वाली बात अर्थतः विशुद्ध - सत्य है । ज़हत्थमधुरं - कई लोग बातें बड़ी मीठी-मीठी करते हैं, लेकिन वे यथार्थ नहीं होतीं, वे कानों को प्रिय लगती हैं, परन्तु वक्ता के मन में चापलूसी या मायाचार का भाव होने के कारण उनका परिणाम स्वार्थसिद्धि या धोखेबाजी होने के कारण वे यथार्थ–मधुर नहीं होती । इसलिए शास्त्रकार ने बताया कि केवल मधुरवचन पूर्वोक्त प्रकार के स्वार्थ या माया से लिपटा हुआ हो तो वह असत्य है, किन्तु मधुरता के साथ जिस वचन में यथार्थता हो, वह वचन सत्य है । सत्य के चमत्कार - शास्त्रकार ने इस सूत्रपाठ में सत्य के प्रभाव से होने वाले प्रत्यक्ष और परोक्ष चमत्कारों का वर्णन किया है । सत्य अपने आराधकों को अनेक
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy