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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र पड़ने वाली दृष्टि से (कोडपयंगतसथावरदयावरेण) कोड़े,पतंगे तथा त्रस-स्थावर जीवों की दया में तत्पर (निच्चं) सदा (पुप्फफलतयपवालकंदमूलदगमट्टियबीजहरियपरिवज्जिएण) फूल, फल, छाल, प्रवाल -पत्त, कंद, मूल, जल, मिट्टी, बीज और हरितकाय का वर्जन करते हुए, (सम्म) सम्यक् प्रकार से, (ईरियव्वं) गमन करना चाहिये । (एवं) इस प्रकार ईर्यासमिति से चलते हुए साधु को (खलु) निश्चय ही (सव्वपाणा) समस्त जीवों का (न हीलियम्वा) तिरस्कार या उपेक्षा भाव नहीं करना चाहिए, (न निदियव्वा) न निन्दा करनी चाहिए, (न गरहियव्वा) न दूसरों के सामने बुराई–गर्दा करनी चाहिए, (न हिंसियव्वा) न उनकी हिंसा करनी चाहिए, (न छिदियव्वा) न उनका छेदन-टुकड़े करना चाहिए, (न भिंदियव्या) न भेदन करना-फोड़ना चाहिए, (न वहेयव्वा) न उन्हें व्यथित हैरान करना चाहिये, (जे भयं दुक्खं च न किंचि पावेउं लब्भा) इन जीवों को जरा भी भय और दुःख नहीं पहुंचाना चाहिये। (एवं) इस प्रकार (ईरियासमितिजोगेण) ईर्यासमिति में मनवचन-काया की प्रवृत्ति से (भावितो) भावित (भवति) होता है। तथा (असबलमसंकिलिट्ठ-निव्वणचरित्तभावणाए) इक्कीस शबल दोषों से रहित, संक्लिष्ट परिणामों से रहित, अक्षत-अखण्ड चारित्र की भावना से युक्त या भावनापरायण (संजए) संयमशील-मृषावाद आदि से विरत, (अहिंसए) अहिंसक, (सुसाहू) मोक्ष का उत्कृष्ट साधक होता है । (च) और (बितीयं) द्वितीय मनःसमिति भावना का रूप यह है- (पावएणं) पापरूप-दुष्ट (मणेण) मन से (पावकं) पापकारी, (अहम्मियं) अधार्मिक धर्मभावना से रहित, (दारुण) कठोर, (निसंस) नृशंस-निर्दय, (वहबंधपरिकिलेसबहुलं) वध, बंधन और संताप से भरा हुआ, (भयमरणपरिकिलेससंकिलिट्ठ) भय, मृत्यु और क्लेश से कलुषित-मलिन, (पावगं) पापकर्म का (पावएणं मणेण) पापी- दुष्ट मन से (कयावि) कदापि (किंचि वि) जरा-सा भी (न झायव्वं) चिन्तन नहीं करना चाहिये । (एवं) इस प्रकार (मणसमितिजोगेण) चित्त के सत्प्रवृत्तिरूप व्यापार से (भावितो) भावित-सुवासित (अंत्तरप्पा) अन्तरात्मा साधक (असबलमसंकिलिट्ठ-निव्वणचरित्तभावणाए) शबलदोषों से रहित, असंक्लिष्टशुद्धपरिणामी, अक्षतचारित्र की भावना से युक्त, (अहिंसए) अहिंसक, (संजए) संयमी-इन्द्रियनिग्रही (सुसाहू) शान्त अन्तःकरण वाला सुसाधु (भवति) होता है (च) और (ततियं) तीसरी वचनसमितिभावना का स्वरूप यह है (पावियातेवतीते) पापरूप वाणी द्वारा (पावकं) पाषरूप-सावधवचन,(अहम्मियं) अधर्म से युक्त,(दारुणं) कठोर