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________________ ५७२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र किसी निर्बलव्यक्ति या अपने नौकर आदि को उसकी दान देने की अनिच्छा होने पर भी डरा, धमका कर उससे जबर्दस्ती साधु को दिलावे या स्वयं छीन कर साधु को दे दे तो उसके लेने से साधु को आच्छेद्यदोष लगता है। अनिसृष्टदोष-भोजनादि किसी पदार्थ के मालिक द्वारा अपने अधीन नौकर, पुत्र, गुमाश्ते आदि को साधु को देने की मनाही होने पर भी यदि कोई भक्तिवश साधु को देने लगे तो वहाँ साधु द्वारा उस वस्तु को लेने पर अनिसृष्ट दोष लगता है । अनिसष्ट के दो भेद हैं—ईश्वर और अनीश्वर । देयपदार्थ का मालिक देने की इच्छा करे, लेकिन मंत्री, गुमाश्ते आदि अपने मातहत नौकरों को मना करें तो उनसे लिया हुआ भोजन ईश्वर–अनिसृष्ट कहलाता है। स्वामी द्वारा निषिद्ध किया हुआ भोजनादि पदार्थ अन्य जनों द्वारा दिया जाय और उसे साधु ग्रहण कर ले तो अनीश्वरअनिसृष्ट कहलाता है। इसी प्रकार साझी वस्तु उसके सब मालिकों की अनुमति के बिना लेना भी, अनिसृष्ट दोष है। अध्यवपूरक-संयमी साधुओं को गाँव की ओर आते देख कर उनको देने के लिए अपने निमित्त तैयार किये जाने वाले भात आदि में वैसी ही वस्तु और अधिक मिला कर उसकी वृद्धि किये गए अशनादि के लेने से साधु को यह दोष लगता है। इस प्रकार उद्गम के पूर्वोक्त १६ दोषों से मुक्त, गवेषणा से परिशुद्ध आहार आदि साधु को लेना चाहिए। उत्पादना के सोलह दोष और उनके लक्षण-उत्पादना के १६ दोष दातागृहस्थ के निमित्त से नहीं लगते। जिह्वालोलुपता,शरीरशुश्रूषा,सुकुमारता आदि कारणों से साधु के निमित्त से ही ये दोष पैदा होते हैं। उन १६ दोषों के लिए निम्नोक्त गाथाएँ प्रस्तुत हैं धाईदूइणिमित्ते आजीववणीमगे तिगिच्छा य । कोहे माणे माया-लोभे य हवंति दस एए ॥१॥ पुस्विंपच्छासंथव विज्जा-मंते य चुन्न-जोगे य। उप्पायणाइ दोसा सोलसमे मूलकम्मे य ॥२॥ अर्थात्-धात्री, दूती, निमित्त, आजीव, वनीपक, चिकित्सा, क्रोध, मान, माया, लोभ ; ये दश तथा पूर्व–पश्चात्-संस्तव, विद्या, मंत्र, चूर्ण, योग और मूलकर्म ये ६ मिलाकर कुल १६ दोष उत्पादना के होते हैं। ___ धात्रीदोष—साधु या साध्वी यदि किसी गृहस्थ के बालक या बालिका की धात्री (धाय) का काम करके आहार पानी,वस्त्र आदि गृहस्थ से ग्रहण करें तो वहाँ धात्रीदोष लगता है । धात्री पांच प्रकार की होती हैं-क्षीरधात्री (बालक को दूध पिलाने वाली), मज्जनधात्री (स्नान कराने वाली), मंडनधात्री (बालक को कपड़े, गहने आदि पहनाने वाली), क्रीड़नधात्री (बालक को खेलाने वाली) और उत्संगधात्री (गोद में
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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