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छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर
अंधेरे से उजाले में लाना संकमण दोष है, जबकि साधु के आते ही दीपक संजो कर प्रकाश करना प्रकाशनदोष है।
क्रीतदोष-गृहस्थ द्वारा साधु के लिए खरीदे गए वस्त्र,पात्र,भोजन आदि लेने से क्रीत दोष लगता है। क्रीत दोष के भी चार भेद हैं- आत्मद्रव्य क्रीत, परद्रव्यक्रीत, आत्मभावक्रीत और परभावक्रीत । भिक्षा के लिए संयमी के प्रवेश करने पर गाय आदि देकर बदले में लिया भोजन साधु को देना स्वद्रव्यकीत दोष है, दूसरों को साधु की महिमा बताकर उससे आहारादि कोई वस्तु खरीदवा कर साधु को देना परद्रव्य क्रीतदोष है। इसी तरह प्रज्ञप्ति आदि विद्या और चेटकादि मंत्रों के बदले में आहार स्वयं खरीद कर साधु को देना आत्मभावक्रीतदोष है, और उपर्युक्त विद्या और मंत्रों के बदले में दूसरों से आहारादि खरीदवा कर साधु को देना परभावक्रीतदोष है ।
प्रामित्यदोष–साधु के लिए कोई वस्तु उधार ले कर गृहस्थ द्वारा देने से साधु को प्रामित्य दोष लगता है। इसके भी दो भेद हैं—सवृद्धिक और अवृद्धिक । कर्ज से अधिक देना सवृद्धिक है और जितना कर्ज लिया, उतना ही देना अवृद्धिक है।
• परिवर्तितदोष-एक गृहस्थ से दूसरे गृहस्थ ने साधु के लिए एक वस्तु के बदले . भोजनादि दूसरी वस्तु ली हो ; उस वस्तु के लेने में साधु को परिवर्तितदोष लगता है।
___ अभ्याहृतदोष-साधु के लिए गृहस्थ द्वारा सम्मुख लाए हुए आहारादि के लेने से साधु को अभ्याहृत दोष लगता है। इसके दो भेद हैं—आचीर्ण और अनाचीर्ण । कल्पनीय घरों से ला कर दिया हुआ आहार आचीर्ण है और अकल्पनीय घरों से ला कर दिया हुआ अनाचीर्ण है। इन दोनों के भी प्रच्छन्न और प्रकट तथा स्वग्राम और परग्राम के भेद से ४ भेद होते हैं। इनके अर्थ स्पष्ट हैं ।
उद्भिन्नदोष-मिट्टी, लाख आदि से लीपा हुआ या मुहर लगा कर अंकित किया हुआ औषध,घी,तेल,आदि द्रव्यों के बर्तन का लेप या मुखबंध आदि साधु के लिए तोड़ कर दिये जाने वाले पदार्थों के लेने से साधु को उद्भिन्न दोष लगता है। इसके भी दो भेद हैं—पिहितोद्भिन्न और कपाटोद्भिन्न । पिहितोद्भिन्न तो कुप्पी आदि का मुखबंध खोल कर या टीन आदि की सील तोड़ कर साधु को देने से लगता है, तथा कपाटोद्भिन्न वह दोष है, जहाँ वर्षों से बंद कपाट को खोल कर साधु को कोई पदार्थ देने से लगता है।
. मालापहृत-मालारोहणदोष-दाता यदि टेढ़ीमेढ़ी सीढ़ी या निःश्रेणी पर चढ़ कर अथवा ऊँचे ऊबड़-खाबड़-विषम स्थान पर चढ़ कर या नीचे तलघर में उतर कर आहारादि देने लगे तो उसके ग्रहण करने से साधु को यह दोष लगता है ; क्योंकि ऊपर चढ़ने या नीचे उतरने आदि से दाता के गिर पड़ने, चोट लगने या प्राणहानि होने की संभावना है ; इसलिए यह दोष माना गया है।
आच्छेद्यदोष-राजा, चोर, गाँव का मुखिया या अन्य कोई बलवान् व्यक्ति