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________________ छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर ५६१ १६ उद्गम के, १६ उत्पादना के और दस एषणा के दोषों से रहित शुद्ध (ववगय-चुयचाविय-चत्तदेह) दाता के द्वारा देय (दी जाने वाली) वस्तु स्वयं ही अचित्त हो या दूसरे के द्वारा अचित्त की गई हो, अथवा दाता द्वारा देय द्रव्य से जन्तु पृथक् किए हों या कराये गए हों तथा जिस देय वस्तु से स्वयमेव जीव पृथक् हो गए हों, ऐसे (च) और (फासुर्य) प्रासुक अचित्त, (सुद्ध) भिक्षा के दोषों से रहित शुद्ध, (उंछ) भिक्षान्न की (गवेसियव्वं) गवेषणा-शोध करनी चाहिए। यानी ऐसा एषणाशुद्ध आहार ग्रहण करने योग्य है। किन्तु (निसज्जकहा-पओयणक्खासुओवणीयंति) गृहस्थ के घर आसन पर बैठ कर धर्मकथा के प्रयोजनरूप आख्याओं ... कहानियों के सुनाने से गृहस्थ द्वारा दिया गया अन्न (न) न हो। (तिगिच्छामंतमूलभेसज्जकज्जहेउं) चिकित्सा, मंत्र, जड़ीबूटी, औषध आदि के कार्य के हेतु (न) न हो, (लक्खणुप्पायसुमिण-जोइस-निमित्त-कहकुहकप्पउत्तं स्त्रीपुरुष आदि के शुभाशुभसूचक लक्षण-चिह्न, उत्पात-भूकम्प, अतिवृष्टि, दुष्काल आदि प्रकृतिविकार, स्वप्न, ज्योतिष-ग्रहविचार, मुहूर्त, फलित आदि शुभाशुभनिमित्तसूचक शास्त्र, तथा विस्मय उत्पन्न करने वाले चामत्कारिक प्रयोग या जादू के प्रयोग के कारण दिया गया (न) न हो । (डंभणाए वि) दम्भ से लिया हुआ भी (न) न हो, (रक्खणाए वि) दाता के पुत्र आदि को रखने या उसकी रक्षा करने के निमित्त से प्राप्त भी (न) न हो । (सासणाए वि) पुत्र आदि को शिक्षा देने या पढ़ाने के निमित्त से भी (न) न हो, (दंभरक्खणसासणाए) दम्भ, रक्षा और शिक्षा इन तीनों निमित्तों से प्राप्त (भिक्खं) भिक्षा का (न वि गवेसियव्वं) गवेषण-ग्रहण नहीं करना चाहिए। (वंदणाते वि) गृहस्थ का अभिवादन या उसकी स्तुति करने से प्राप्त भी (न) नहीं, (माणणाते वि) गृहस्थ का सत्कार-सम्मान करके भी (न) नहीं,(पूयणाए वि) पूजासेवा करके भी (न) नहीं, (वंदणमाणणपूयणाते वि) स्तुति-अभिवादन, सत्कारसम्मान और पूजा-सेवा करके भी (भिक्खं न गवेसियव्वं) भिक्षा की गवेषणा नहीं करना चाहिये। (हीलणाते वि) जाति आदि की अपकीति—बदनामी करके भी (न) नहीं, (निंदणाते वि) दाता के सामने उसकी निन्दा करके भी (न) नहीं, (गरहणाते वि) लोगों के सामने दाता के अवगुण प्रकट करके भी (न) नहीं, (होलनिवणगरहणातेवि) हीलना, निन्दा और गर्हणा–भर्त्सना करके भी, (भिक्खं न गवेसियव्वं) भिक्षा की गवेषणा नहीं करनी चाहिये । (भेसणाते वि) दाता को डरा कर-भय दिखा कर
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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