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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र ऐसे महाव्रती महामुनियों के लिए अहिंसा की साधना अनिवार्य होती है। अहिंसा के बिना वे एक कदम भी आगे नहीं चल सकते । फलतः अहिंसा की दीर्घकालिक साधना के बाद उनमें इतनी शक्ति आ जाती है कि वे चाहे जैसी परिस्थिति में अपने आपको सुदृढ़ रख सकते हैं।
उनमें सबसे पहले वे तपस्वी आते हैं, जो तीन या चार प्रकार के आहार का त्याग करके एक उपवास से ले कर एकमास, दोमास, तीनमास यावत् छहमास तक के उपवास करते हैं । ऐसे तपस्वियों के द्वारा सूक्ष्मता से निरन्तर आराधित अहिंसा अत्यन्त तेजस्वी बन जाती है।
उत्क्षिप्तचर, निक्षिप्तचर, अन्तचर, प्रान्तचर, रूक्षचर, अग्लायक, समुदानभिक्षाचर, मौनचर आदि का अर्थ स्पष्ट है ।
संसट्ठकप्पिएहिं—जिनका आचार संसृष्ट नामक अभिग्रहरूप होता है, वे संसृष्टकल्पिक कहलाते हैं । अर्थात्-दाता का हाथ या पात्र लिप्त हो, या हाथ लिप्त न हो, पात्र लिप्त हो, अथवा पात्र लिप्त न हो, हाथ लिप्त हो ; तथा देय पदार्थ सावशेष (कुछ बचा हो) या निरवशेष (देने के बाद कुछ न बचा) हों ; तभी भिक्षा ग्रहण करेंगे, इस प्रकार के अभिग्रहधारी' संसृष्टकल्पिक कहलाते हैं। इस दृष्टि से संसृष्टकल्पिक के ८ भंग बनते हैं—(१) हाथ और पात्र दोनों संसृष्ट (देय वस्तु से लिप्त) हों, देय द्रव्य बचा हो, (२) हाथ और पात्र दोनों लिप्त हो, द्रव्य बचा न हो, (३) हाथ लिप्त हो, किन्तु पात्र लिप्त न हों और द्रव्य बचा हो, (४) हाथ लिप्त हो, किन्तु पात्र लिप्त न हो और द्रव्य न बचा हो ; (५) हाथ लिप्त न हो, पात्र लिप्त हो, किन्तु द्रव्य बचा हो, (६) हाथ लिप्त न हो,पात्र लिप्त हो, किन्तु द्रव्य बचा न हो ; (७) हाथ और पात्र लिप्त न हों, किन्तु द्रव्य बचा हो, (७) हाथ और पात्र लिप्त न हों, किन्तु द्रव्य बचा न हो ।
__उपनिधिक, शुद्धषणिक, आचाम्लिक, पुरिमाद्धिक, एकाशनिक, निविकृतिक आदि के अर्थ पदार्थान्वय में स्पष्ट हैं।
संखादत्तिएहि-जो भिक्षाजीवी साधु दत्तियों की संख्या निश्चित करके भिक्षा ग्रहण करता है, वह संख्यादत्तिक कहलाता है। दाता गृहस्थ के हाथ से एक बार में जितना आहार भिक्षापात्र में पड़ जाय, उसे एक दत्ति कहते हैं । इसी प्रकार दो, तीन, चार या पांच दत्ति का अर्थ समझना चाहिए।
दिट्ठलाभिएहिं अदिट्ठलाभिएहि पुट्ठलाभिएहि-दिखाई देने वाले स्थान से लाए हुआ भोजन को ही जो ग्रहण करते हैं, वे दृष्टलाभिक होते हैं । अदृष्ट (पहले
१ इन सबका विशेष वर्णन पिंडनियुक्ति, यतिदिनचर्या आदि ग्रन्थों में देखें।
-संपादक