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________________ ५५० श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र तीर्थंकर के शासन को चलाने का अधिकार एवं गणधर पद जिसके प्रभाव से प्राप्त हो, उसे गणधरलब्धि कहते हैं। इसी प्रकार पुलाकचारित्र से प्राप्त होने वाली लब्धि पुलाकलब्धि कहलाती है। पुलाकलब्धि से युक्त मुनि कुपित होने पर चक्रवर्ती की सेना तक को चूर-चूर कर सकता है। चतुर्दशपूर्वधारी मुनिराज जिस लब्धि के प्राप्त होने पर निगोद आदि के सम्बन्ध में अपने संशय को दूर करने के लिए तथा जिनभगवान् की ऋद्धि के दर्शन के लिए अपने शरीर से मुंड हाथ का अत्यन्त देदीप्यमान पुतला विक्रिया से बना कर महाविदेह आदि क्षेत्र में विराजित तीर्थंकर के पास भेजते हैं, उस लब्धि को आहारकलब्धि कहते हैं। जिस लब्धि के प्रभाव से मधु, घृत और दूध के अतिशय रस के समान रसपूर्ण मधुर आकर्षक वचन निकलते हों, अथवा साधक के वचन ही शरीरादि दुःख से संतप्त जीवों को मधु-घृत दुग्ध की तरह तृप्त करने वाले हों, या जिसके पात्र में पड़ा हुआ तुच्छ अन्न भी मधु-दुग्ध-घृत की तरह बलप्रदायी हो, उसे मधु-सर्पिःक्षीरास्रवलब्धि कहते हैं। जैसे कोठार में भरे हुए अनाज वर्षों तक अलग-अलग रूप में बहुत सुरक्षितरूप से पड़े रहते हैं ; वैसे ही जिस लब्धि के प्रभाव से भिन्न-भिन्न पदार्थ जैसे सुने या जिस प्रकार से एक बार जाने गए हैं उसी रूप में वर्षों तक दिमाग में अविस्मृत भाव से स्थिर रखने की बुद्धि कोष्ठबुद्धिलब्धि कहलाती है । जोते हुए खेत में बोया हुआ और जमीन, पानी आदि अनेक पदार्थो के संयोग से नष्ट न हुआ, जंसे अखंड एक बीज अनेक बीजों को पैदा करता है, वैसे ही जिस लब्धि के प्रभाव से ज्ञानावरणीयादि कर्म के क्षयोपशम से बुद्धि इतनी तीव्र हो कि एक अर्थबीज को सुनने पर उससे सम्बन्धित अन्य अनेक अर्थबीजों का ज्ञान हो जाय, उसे बीजबुद्धि कहते हैं। जिस लब्धि के प्रभाव से बुद्धि इतनी निर्मल व तीक्ष्ण हो जाय कि आगम का एक पद जान कर उसके पीछे-पीछे सैकड़ों पदों का ज्ञान होता चला जाय,उसे पदानुसारिणी लब्धि कहते हैं । पदानुसारिणी लब्धि तीन प्रकार की होती है- अनुस्रोत:पदानुसारिणी, प्रतिस्रोतःपदानुसारिणी और उभयपदानुसारिणी । जहाँ किसी से सूत्र के प्रारम्भ का एक पद सुन कर अन्तिम पद तक के अर्थ को जानने की बौद्धिक क्षमता हो वहाँ अनुस्रोतःपदानुसारिणी लब्धि होती है। जहाँ सूत्र के अन्तिम एक पद को दूसरे से सुन कर सूत्र के आदि पद तक के अर्थ को जानने की क्षमता हो, वह प्रतिस्रोतःपदानुसारिणी लब्धि होती है। जहाँ दोनों प्रकार से जानने की शक्ति हो, वहाँ उभयपदानुसारिणी लब्धि होती है। जिस लब्धि के प्रभाव से महामुनि के पात्र का जा-सा आहा भी गणधर गौतमस्वामी आदि की तरह अनेक व्यक्तियों को दे देने पर भी या अनेक व्यक्तियों
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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