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________________ ५४७ छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर पुव्वधरेहिं अधीता-उत्पाद नामक प्रथम पूर्व ( श्रुतज्ञान) से ले कर चौदहवें पूर्व तक के अध्ययन से श्रुतज्ञान की पूर्ण उपलब्धि होती है । उत्पाद, अग्रायणीय आदि १४ पूर्वों के अध्ययन करने वाले का अधिकार महाव्रती मुनि के सिवाय किसी को नहीं है । अतः फलित हुआ कि अहिंसा महाव्रत की उत्कृष्ट और पूर्ण साधना करने के लिए पूर्वों के अध्येता महामुनि पूर्वश्रुतों में यत्रतत्र वर्णित अहिंसा के स्वरूप और कार्य का यथातथ्य ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं । तभी वे अहिंसा की साधना यथार्थरूप से कर सकते हैं । araaife पतिन्ना आभिणिबोहियनाणीहि चारणेहिं विज्जाहरेहिंउपर्युक्त सूत्रपाठ में वैक्रियलब्धि से लेकर विद्यालब्धि तक के धारकों द्वारा अहिंसा का आजन्म पालन करने का उल्लेख है । इसका आशय यह है कि इन विभिन्न लब्धि - धारियों के द्वारा अहिंसा की यथार्थ साधना तभी फलित होती है, जब वे स्वरूपतः और कार्यत: अहिंसा का मन-वचन-काय से शुद्ध आचरण करते हैं । और तभी वे अहिंसा की उस साधना के फलस्वरूप उक्त लब्धियां - शक्तियाँ, ऋद्धियाँ या सिद्धियां प्राप्त करते हैं । विभिन्न लब्धियों का संक्षिप्त स्वरूप -- प्रसंगवश अहिंसा की उत्कृष्ट साधना से प्राप्त लब्धियों के वर्णन के लिए पूर्वाचार्यप्रणीत गाथाएँ प्रस्तुत करते हैंसम्माणु - सव्वविरई - मल- विप्पाऽमोस खेल - सव्वोसही । faraat - आसीविस - ओही रिउ विउल- केवलयं ॥१॥ संभिन्न चक्की - जिण हरि-बल- चारण- पुब्व- गणहर-पुलाए । आहार - महुघयखीरआसवो कुट्ठबुद्धी य ॥२॥ बीमई - पाणुसारी- अक्खीणगतेय सीयलेसाइ । इय सयल लद्धिसंखा भवियमणुयाणमिह सव्वा ॥३॥ अर्थात् — १ सम्यक्त्वलब्धि, २ अणुव्रतलब्धि, ३ सर्वविरतिलब्धि, ४ मललब्धि, ५ विप्रुषलब्धि, ६ आमर्शलब्धि, ७ खेललब्धि, ८ सर्वोषधिलब्धि, ६ वैक्रियलब्धि, १० आशीविष लब्धि, ११ अवधिलब्धि, १२ ऋजुमतिलब्धि, १३ विपुलमतिलब्धि, १४ केवललब्धि, १५ संभिन्नश्रोतोलब्धि, १६ चक्रवर्तित्त्वलब्धि, १७ अर्हत्त्वलब्धि, १८ वसुदेवत्त्वलब्धि १६ बलदेवत्वलब्धि, २० चारणलब्धि, २१ पूर्वलब्धि, २२ गणधरलब्धि, २३ पुलाकलब्धि, २४ आहारकलब्धि, २५ मधुघृतक्षीरास्रवा लब्धि, २६ कोष्ठबुद्धिलब्धि, २१ बीजबुद्धिलब्धि, २८ पदानुसारीलब्धि, २६ अक्षीणकलब्धि, ३० तेजोलेश्यालब्धि, ३१ शीतलेश्यालब्धि, इस प्रकार समस्त लब्धियों की संख्या है । ये सब लब्धियां इस संसार में भव्य मनुष्यों को प्राप्त होती हैं । तत्त्वों पर यथार्थ श्रद्धा होना सम्यक्त्व है, जो क्षायिक, क्षायोपशमिक और औपशमिक तीन प्रकार का है । इस प्रकार के सम्यक्त्व की प्राप्ति होना सम्यक्त्वलब्धि -
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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