SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 589
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५४४ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र प्रतिदिन सूर्योदय से दोपहर तक आहार लेने का त्याग करने वालों ने प्रतिदिन एकाशन करने वालों ने, घी दूध वगैरह विकृतिजनक ( विग्गइ) पदार्थों के त्याग करने वालों ने, खण्डित हुए मोदक आदि को ही ग्रहण करने की प्रतिज्ञा वालों ने, परिमित भोजन ही ग्रहण करने की प्रतिज्ञा वालों ने गृहस्थ के खाने के बाद बचे हुए भोजन को ही सेवन करने के नियम वालों ने, तुच्छ, बासी व ठंडा भोजन ही सेवन करने के नियम वालों ने हींग आदि से छौंका हुआ न हो, ऐसे असंस्कृत भोजन का ही सेवन करने वालों ने रसहीन बासी आहार को ही लेने के नियम वालों ने, रूखा-सूखा आहार ही कर लेने की प्रतिज्ञा वालों ने, सारहीन या अत्यल्प आहार करने को हो प्रतिज्ञा वालों ने, गृहस्थ के भोजन से बचे हुए भोजन पर ही जीवनभर निर्वाहकर लेने के अभिग्रह वालों ने, बासी भोजन से ही सदा जीवन बसर कर लेने वालों ने, रूखे आहार पर ही सारा जीवन गुजार देने वालों ने, सारहीन या तुच्छ स्वल्प आहार में ही आजीवन संतुष्ट रहने के नियम वालों ने, आहार मिले या न मिले हर स्थिति में क्रोधादि कषायों से दूर रह कर शान्तभाव से जीने वालों ने,हर हाल में अन्तर से भी शान्त रहकर जीवन बसर करने वालों ने, निर्दोष (४२ दोषरहित) आहार आदि से ही जीवननिर्वाह करने वालों ने, दूध, शहद या मीठा और घृत आदि का आजीवन त्याग करने वालों ने, किसी भी हालत में मद्य, और मांस का सेवन न करने वालों ने, इसका भलीभांति आचरण किया है । कायोत्सर्ग में एक स्थान पर स्थित रहने के अभिग्रह वालों ने, एक मास आदि की भिक्षुप्रतिमा धारण करके स्थिर रहने वालों ने, एक स्थान पर उत्कटिकासन धारण करके रहने वालों ने, वीरासन धारण करने वालों ने, निषद्यासन लगाने वालों ने, दण्डासन लगाने वालों ने, टढ़मेढ़े लक्कड़ की तरह सिर और पैर की ऐड़ी जमीन पर टिका कर शेष भाग ऊपर उठाए रख कर शयन करने वालों ने, धूप में आतापना लेने वालों ने, वस्त्र न ओढ़ कर शरीर को खुल्ला रखने वालों ने, थूक एवं कफ आदि को भूमि पर नहीं गिराने वालों ने, खाज न खुजलाने वालों ने, सिर तथा दाढ़ी-मूंछ के बाल, रोम और नखों के संस्कार के प्रति उपेक्षाभाव रखने वालों ने, शरीर पर तेल की मालिश, प्रक्षालन आदि सभी प्रकार के संस्कारों से विरक्त महापुरुषों ने, शास्त्रज्ञ पुरुषों के द्वारा विस्तृत तत्त्वज्ञान को जानने वाली बुद्धि के धनी पुरुषों ने इसका समीचीनरूप से पालन किया है । इसके अतिरिक्त जो
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy