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________________ ५४२ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र दोनों में जिनकी बुद्धि परिपूर्ण कार्य करती है, उन्होंने, ( णिच्चं सज्झाय-ज्झाण- अणुबद्ध धम्मज्झाणा) नित्य स्वाध्याय और चित्तनिरोधरूप -- ध्यान करने वालों तथा धर्मध्यान में निरन्तर चित्त को अनुबद्ध – जोड़े रखने वालों ने, (पंचमहव्वयचरित - जुत्ता) पांच महाव्रतरूप चारित्र से युक्त ( समितिसु समिता ) पांच समितियों में सम्यक् प्रवृत्ति करने वालों ने, ( समितपावा) पापों का शमन करने वालों ने (छविहजगवच्छला ) षड्जीवनिकायरूप विश्व के प्राणिमात्र के वत्सल, ( णिच्चं अप्पमत्ता ) सदा अप्रमत्त-- - प्रमादरहित, इन पूर्वोक्त गुणयुक्त पुरुषों (य) तथा ( अन्न हिं) दूसरे गुणवान व्यक्तियों ने (जा सा भगवती ) इस पूर्वोक्त भगवती अहिंसा का ( अणुपालिया) सतत पालन किया है । मूलार्थ – यह वह भगवती अहिंसा है; जिसे असीम (अनन्त) ज्ञान और दर्शन के धारक; शील गुण, विनय, तप और संयम के नायक मार्ग दर्शक, सारे विश्व के प्राणियों के प्रति वत्सल, तीनों लोकों में पूज्य जिनचन्द्र तीर्थंकरों ने (अनन्त ज्ञान दर्शन द्वारा) भलीभांति देखा है । विशिष्ट अवधिज्ञानियों ने इसे विशेष रूप से जाना है; ऋजुमति- मनः पर्यायज्ञानियों ने इसे विशेष रूप से देख-परख लिया है; विपुलमतिमनः पर्यायज्ञानियों ने इसे विशेष रूप से जान लिया है । चतुर्दशपूर्वधारियों ने इसका अध्ययन कर लिया है; वैक्रियलब्धि धारकों ने इसका आजीवन पालन किया है । इसी प्रकार मतिज्ञानियों, श्रुतज्ञानियों, अवधिज्ञानियों,मनःपर्यायज्ञानियों और केवलज्ञानियों ने इसकी आराधना की है । विशिष्ट तप के द्वारा हाथ आदि से छू लेने मात्र से औषधि रूप बन जाने की आमशलब्धि पाये हुए ऋषियों ने, थूक के औषधिरूप बन जाने की खेलौषधि लब्धि पाये हुए मुनियों ने, जिनके शरीर का पसीना, मैल आदि ही औषधि रूप हो गया है, ऐसी जल्लौषधि - लब्धिधारियों ने, जिनका मलमूत्र ही औषध रूप बन गया है, ऐसी विप्र षौषधि नामक लब्धिप्राप्त मुनियों ने, शरीर के समस्त अवयव ही जिनके औषधिरूप बने गए है; ऐसी सर्वोषधिलब्धि पाये हुए महापुरुषों ने इसकी साधना की है । मूल अर्थ को जान कर सारा का सारा विशेष अर्थ जान लेने वाली बीजबुद्धिरूप लब्धि के धारकों ने, एक बार जान लेने पर सदा याद रखने वाली कोष्ठबुद्धि नामक लब्धि से युक्त मुनियों ने, एक पद से सैकड़ों पदों को जान लेने वाली पदानुसारिणीलब्धि सम्पन्न पुरुषों ने, शरीर के प्रत्येक अवयव से चारों तरफ के शब्दों को सुनने को शक्ति अथवा शब्द, रस आदि विषयों को एक साथ ग्रहण करने की इन्द्रियों को शक्ति, या एक साथ उच्चारण किये हुए अनेक प्रकार के शब्दों को भिन्न-भिन्न रूप से जानने की शक्ति वाली संभिन्न स्रोत लब्धि से युक्त पुरुषों
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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