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छठा अध्ययन : अहिंसा - संवर
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भोजन करने से बचे हुए भोजन से ही सदा निर्वाह करने वालों ने, ( पंतजी विहि ) ठंडे वासी भोजन से सदा निर्वाह करने वालों ने, (लूहजीविहि) जीवनभर रूखे भोजन पर ही जीने वालों ने, (तुच्छ जीविहि) सारहीन या तुच्छ अल्प आहार पर ही जिंदगी बसर करने वालों ने, ( उदसंतजीविहि) आहार प्राप्त हो या न हो, तब भी चारों कषायों की उपशान्तिपूर्वक जीवन बिताने वालों ने, ( पसंतजीविहि), अन्तर्मन में भी क्रोधादि न करके हर हाल में शान्त जीवन बिताने वालों ने विवित्तजीदिहिं) दोषरहित आहार आदि से जीवन यात्रा चलाने वालों ने, (अखीरमधुसप्पिएहि ) दूध, मधु और घी का यावज्जीवन त्याग करने वालों ने, (अमज्जमंसासिएहिं ) किसी भी हालत में मद्य और मांस से रहित आहार करने वालों ने, (ठाणाइएहिं ) कायोत्सर्ग में एक स्थान पर स्थित रहने के अभिग्रह वालों ने, अथवा एक ही बार में एक ही स्थान पर बैठ कर भोजन और पानी ग्रहण करने वालों ने अथवा अमुक स्थान पर ही स्थित रहने या बैठे रहने का अभिग्रह - विशेष धारण करने वालों (पमिट्ठाइहिं) एक मास आदि की भिक्षु प्रतिमा धारण करके स्थिर रहने वालोंने, ( ठाक्कडिएहिं ) उत्कटिका ( उत्कटुक - उकडू) आसन धारण करने वालों ने, (वीरासणिएहिं ) वीरासन धारण करने वालों ने, (णेसज्जिएहिं ) निषद्या-आसन लगाने वालों ने, ( डंडाइएहिं ) दंड की तरह लंबे पड़ कर आसन दण्डासन लगाने वालों ने, (लगंड साइहिं) सिर तथा पैर की एडी जमीन पर टिका कर एवं शेष भाग को ऊपर उठा कर टेढ़े मेढ़ े लक्कड़ की तरह शयन करने वालों ने, ( एगपासगेहिं एक ही पार्श्व ( बगल) से शयन करने वालों ने, ( आयावएहिं ) धूप में आतापना लेने वालों ने, ( अप्पावहिं ) वस्त्र ओढ़े विना खुले वदन रहने वालों ने, (अणिट्टुभएहिं ) थूक, कफ आदि को भूमि पर नहीं डालने वालों ने, ( अकंडुए हिं) खाज नहीं खुजलाने वालों ने, (घुतके समंसुलोमनखेहिं) सिर के बाल, दाढ़ी-मूंछ के बाल और नखों का संस्कार करने का त्याग करने वालों ने, ( सव्वगायपडिकम्मविप्प मुक्केहिं) शरीर के तैलमर्दन, प्रक्षालन आदि सभी संस्कार का त्याग करने वालों ने, ( सुयधरविदितत्थकायबुद्धीहिं ) शास्त्रों के ज्ञाताओं द्वारा तत्त्वार्थों को अवगत करने वाली बुद्धि के धारक महात्माओं ने इस अहिंसा का ( समणुचिन्ना) सम्यक् प्रकार से आचरण किया है । (य) और (जे) जो (धीरमतिबुद्धिणो) धीर स्थिर — क्षोभरहित अवग्रहादि मति - ज्ञान एवं औत्पातिकी आदि बुद्धि से सम्पन्न हैं, (ते) उन्होंने, तथा (आसीविस उग्गतेयकप्पा) दाढ़ में जहर वाले सांप के समान अपनी तपस्या से उग्रविषतुल्य तेज वाले ऋषियों ने, (निच्छ्य- ववसायपज्जत्तकयमतीया ) वस्तुतत्त्व के निश्चय और पुरुषार्थ