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________________ ५४० श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र लगे, तभी आहार ग्रहण करने के अभिग्रहधारकों ने, (मोणचरएहिं) मौन धारण करके भिक्षा ग्रहण करने की प्रतिज्ञा लेने वालों ने अथवा किसी से किसी भी चीज की याचना न करते हुए मौन रह कर विचरण करने वालों ने, (समुदाणचरएहि) बिना किसी भेदभाव के उच्च, नीच, मध्यम (छोटे या बड़े) सभी घरों से भिक्षाचरी करने वालों ने, (संसट्ठकप्पिएहि) आटे आदि से लिप्त हाथ या बर्तन से आहार ग्रहण करने की प्रतिज्ञा वालों ने, (तज्जायसंसट्टकप्पिहि) जिस प्रकार का भोजनादि देय द्रव्य है, उसी प्रकार के द्रव्य से लिप्त हाथ या बर्तन से आहार लेने की प्रतिज्ञा वालों ने, (उवनिहिएहि) दाता के पास में जो आहार रखा हुआ है, केवल उसी को ग्रहण करने की प्रतिज्ञा वालों ने, (सुद्ध सणिएहिं) शंकित आदि भिक्षा के ४२ दोषों से रहित शुद्ध आहारादि को लेने की प्रतिज्ञा वालों ने, (संखादत्तिएहिं) दत्तियों की संख्या निश्चित करके ही आहारादि वस्तु लेने के अभिग्रह वालों ने (दिट्ठलाभिएहिं) सामने दिखाई देने वाले स्थान से लाई हुई या दृष्ट-सामने दिखाई देने वाली वस्तु को ही लेने के अभिग्रह वालों ने, (अदिट्ठलाभिएहि) जो पहले नहीं देखी गई, ऐसी दी जाने वाली अदृष्ट वस्तु को ही लेने के अभिग्रह वालों ने, पुट्ठलाभिएहि) आपको क्या चहिए ? इस प्रकार पूछे जाने पर ही, अथवा 'महात्मन् ! यह वस्तु साधुओं के लिए कल्पनीय है या नहीं ? इस प्रकार के पूछने पर ही उपलब्ध वस्तु ग्रहण करने के अभिग्रह वालों ने (आयंबिलिएहिं) आजीवन आयंबिल तप धारण करने वालों ने, (पुरिमड्ढिएहि) उपवासों के सिवाय दिन के दोपहर के बाद ही आहार लेने का यावज्जीव प्रत्याख्यान करने वालों ने, (एक्कासणिएहि) प्रतिदिन एकाशनएक बार भोजन करने वालों ने, (निवितिएहि) प्रतिदिन घी, दूध, दही, तेल और मिठाई आदि विकृति से रहित आहार यावज्जीवन ग्रहण करने वालों ने, (भिन्नपिंडवाइएहिं) दाता के हाथ से पात्र में डाली गई खंडित या अलग-अलग वस्तु की संख्या निश्चित करके ग्रहण करने वालों ने, (परिमियपिंडवाइएहि) परिमित मात्रा में आहार लेने की प्रतिज्ञा वालों ने, (अंताहारेहि) गृहस्थ के भोजन करने के बाद बचे हुए आहार को ग्रहण करने की प्रतिज्ञावालों ने, (पंताहारेहि) ठंड, बासी, तुच्छ, बचेखुचे आहार की प्रतिज्ञा धारण करने वालों ने, (अरसाहारेहि) हींग आदि से असंस्कृत (विना छोंक का) आहार करने वालों ने, (विरसाहारेहि) रसरहित--स्वादरहित पुरानी वस्तु का आहार लेने वालों ने, (लूहाहारेहि। रूखासूखा आहार करने की प्रतिज्ञा वालों ने, (तुच्छाहारेहि) सारहीन--तुच्छ वस्तु का आहार करने की अथवा अल्प आहार करने की प्रतिज्ञा वालों ने, (अंतजीविहि) गृहस्थ के
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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