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छडा अध्ययन : अहिंसा-संवर
(सव्वोसहिपत्तेहिं) ऊपर बताई हुई तथा अन्य समस्त औषधिरूप लब्धि पाये हुए महापुरुषों ने, (बीजबुद्धीहिं) बीजरूप मूल अर्थ जान कर समस्त विशेष अर्थ जान लेने की बुद्धि वालों ने, (कुट्ठबुद्धीहिं) एक बार जान लेने से कभी न भूलने वाली बुद्धि वालों ने अथवा हृदय की सूझ बूझ वाली बुद्धिप्राप्त करने वालों ने, (पदाणुसारोहिं) एक पद से अन्य सैकड़ों पदों को जान लेने की बुद्धिवालों ने, (संभिन्नसोतेहिं) शरीर के प्रत्येक अवयव से चारों तरफ के शब्दों को सुनने की शक्ति वालों ने अथवा शब्द, रस आदि प्रत्येक विषय को एक साथ ग्रहण करने वाली इन्द्रियों की शक्ति रखने वालों ने अथवा एक साथ उच्चारण किये गए अनेक शब्दों को भिन्न-भिन्न रूप से जानने की शक्ति वालों ने, (सुयधरेहि) श्रुतधरों ने, (मणबलिएहि) दुद्धर्ष कार्यों में अक्षुब्ध-अविचल मन वालों ने, (वयलिएहि) छह महीने तक प्रतिवादी को अक्ष ब्ध होकर प्रत्युत्तर देने में समर्थ वचन बलधारियों ने, (कायबलिएहि) भयंकर परिषह आदि आ पड़ने पर भी अडोल रह सकने में समर्थ शरीरबलधारियों ने, (नाणबलिएहिं) मतिज्ञान आदि के बल वालों ने, दंसणबलिएहि) निःशंकित सुदृढ़ तत्त्वार्थ श्रद्धा रूप दर्शन के बल वालों ने (चरित्तबलिएहिं) दृढ़चारित्रबली पुरुषों ने, (खीरासहि) दूध के समान मधुर भाषण को लब्धि वालों ने, (मधुआसवेहि) मधु के समान मधुर उच्चारण की लब्धि वालों ने, (सप्पियासहि) घृत के समान स्निग्ध-स्नेहसिक्त वाक्य बोलने को लब्धि वालों ने, (अक्खीणमहाणसिएहि) जिस लब्धि के प्रभाब से भोजनसामग्री क्षीण न हो--घटे नहीं, इस प्रकार की लब्धि के धारकों ने, (चारणेहिं) आकाश में गमन करने-उड़ने को लब्धि वालों ने, (विज्जाहरेहि) अंगुष्ठादि से प्रश्नों का उत्तर दे सकने की विद्या प्राप्त करने वाले विद्याधरों ने, (चंउत्थभत्तिएहि एवं जाव छम्मासभत्तिएहि) एक-एक उपवास से लेकर दो, तीन चार, पांच, आठ, पन्द्रह, मास, दो मास,तीन मास,चार मास, पांच मास और यावत् छह मास तक का तप करने वालों ने,(उक्खित्तचरएहि) भोजन बनाने के बर्तन से निकाले हए भोजन को ही लेने के अभिग्रह-धारकों ने, (निक्खित्तचरएहि) भोजन पात्र से निकाल कर दूसरे पात्र में रखे हुए भोजन को ही ग्रहण करने का अभिग्रह धारण करने वालों ने, अंतचरएहिं) गृहस्थ के भोजन कर लेने के बाद बचे हुए भोजन को ही ग्रहण करने के अभिग्रह वालों ने, (पंतचरएहि) तुच्छ आहार को ही ग्रहण करने के अभिग्रह वालों ने, (लूहचरएहि) रूखा-सूखा आहार ही ग्रहण करने का अभिग्रह धारण करने वालों ने, (अन्नइलाएहिं) रूखासूखा, ठंडा, तुच्छ, बचाखुचा जैसा-तैसा आहार प्राप्त हो जाय, उसे ही बिना दीनता (ग्लानि) के ग्रहण करने के अभिग्रह वालों ने अथवा आहार के बिना जिस समय ग्लानि होने लगे-मन उचटने