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छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर
५२५ अहिंसा का पालक सबके अबातों को सहन करता है । इसलिए अहिंसा भी क्षान्तिरूप है।
सम्मत्ताराहणा-प्रशम, संवेग, निर्वेद अनुकम्पा और आस्था, ये व्यवहारसम्यक्त्व के पांच लक्षण हैं । जब किसी के जीवन में देव, गुरु और धर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धा होती है तो ये पांचों बातें उसके जीवनव्यवहार में दृष्टिगोचर हो जाती हैं । अहिंसापालक के जीवन में भी उपर्युक्त प्रशमादि पांचों बातें होती है। यानी अहिंसक के जीवन में शान्ति, मोक्ष के प्रति उत्साह, वैराग्य, अनुकम्पा तथा धर्म और धर्मगुरुओं के प्रति आस्था होती है। इसलिए अहिंसा एक तरह से सम्यक्त्व की आराधना ही है । अथवा सम्यक्प्रतीतिरूप होने से भी यह सम्यक्त्व की आराधनारूप है।
महंती-समस्त धर्मानुष्ठानों में अहिंसा महान् है, इसी प्रकार सभी व्रतों में अहिंसा बड़ा व्रत है; अथवा सभी संवरों में अहिंसा प्रधान है। इसलिए इसे 'महती' ठीक ही कहा है । अहिंसा इतनी विशाल है कि शेष सभी व्रत इसी में समा जाते हैं। इसी बात को नियुक्तिकार ने व्यक्त किया है
निदिट्ट् एत्थ वयं इक्कंचि य जिणवरेहि सहि ।
पाणाइवायवेरमणमवसेसा तस्स रक्खट्ठा ।' - अर्थात्— 'सभी जिनवरों ने संसार में एक ही व्रत बताया है और वह हैप्राणातिपातविरमण-अहिंसा। शेष जो अचौर्य आदि व्रत हैं, वे सब इसी अहिंसा की रक्षा से लिए हैं।
बोही --सर्वज्ञकथित धर्म की प्राप्ति को बोधि कहते हैं । अथवा सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्ररूप-रत्नत्रय को भी बोधि कहते हैं; और वह अपने आप में अहिंसारूप है। इसलिए अहिंसा को बोधि कहा गया है । अथवा अहिंसा का नाम अनुकम्पा भी है और वह (अनुकम्पा) बोधि का कारण है । जैसा कि आवश्यक नियुक्तिकार ने कहा है
___.'अणुकंपऽकामणिज्जरबालतवे दाणविणयविन्भंगे।
संजोगविप्पजोगे . वसणूसबइढिसक्कारे ॥ अर्थात् -- अनुकम्पा, अकामनिर्जरा, बालतप, दान, विनय, विभंग, संयोग, विप्रयोग, व्यसन, उत्सव, ऋद्धि और सत्कार ये बोधि प्राप्त होने में निमित्त हैं ।
इसलिए अनुकम्पा बोधि का कारण होने से अहिंसा को बोधि कहा है।
बुद्धी-बुद्धि की सफलता का कारण होने से अहिंसा को बुद्धि कहा है। बुद्धि की सफलता इसी में है कि वह दुष्कृत्यों के चिन्तन को छोड़ कर सुकृत्यों और धर्मकार्यों के चिन्तन में लगे । कहा भी है