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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
उसकी प्रसिद्धि जनता में सब ओर हो जाती है। इसलिए कीर्ति का कारण होने से कारण में कार्य का उपचार करके अहिंसा को 'कीति' कहा है।
कंती अद्भुत सौन्दर्य को कान्ति कहते हैं। क्रोधादिविकार आत्मिक सौन्दर्य को नष्ट कर देते हैं, जबकि अहिंसा सद्गुणों से आत्मिक सौन्दर्य की बढ़ाती है। जब क्रोधादि आते हैं तो भौहें टेढ़ी हो जाती हैं, ओठ कांपने लगते हैं. चेहरा लाल हो जाता है, साथ ही मन और बुद्धि में विकृतभाव पैदा हो जाते हैं, विरोधी का अनिष्ट करने की सूझती है । इस तरह शरीर में भी कुरूपता बढ़ती है,मन और बुद्धि में भी । यानी क्रोधादि से शारीरिक,मानसिक और आत्मिक सौन्दर्य नष्ट हो जाता है, जब कि अहिंसा से चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है,आँखें और मुंह भी प्रसन्न दीखते हैं, शरीर का तेज बढ़ जाता है, इसलिए शारीरिक और आत्मिक सौन्दर्य में वृद्धि का कारण होने से अहिंसा का कान्ति नाम भी सार्थक है।
रती—जिसके जीवन में अहिंसा होती है, उसके प्रति लोगों को सहज ही प्रीति उत्पन्न होती है । अहिंसा अपने आराधक को लोकप्रिय, जनवल्लभ बना देती है । इसलिए रति-प्रीति उत्पन्न करने का कारण होने से अहिंसा को 'रति' कहा है।
विरती-हिंसा आदि दुष्कृत्यों से निवृत्ति विरति कहलाती है। अहिंसा भी हिंसा आदि दुष्कृत्यों से निवृत्तिरूप है। इसलिए इसका 'विरति' नाम भी सार्थक है।
सुयंग—अहिंसा की भावना सबसे पहले श्रुतज्ञान-आगमज्ञान से पैदा होती है । अर्थात्-आगम का अभ्यास-मनन आदि करने से अहिंसा उत्पन्न होती है। कहा भी है—'पढमं नाणं तओ दया' । इस शास्त्रवाक्य के अनुसार पहले ज्ञान होता है, तत्पश्चात् दया होती है । इसलिए अहिंसा की उत्पत्ति का एक कारण श्रुतज्ञान होने से इसे श्र तांग कहा है।
तित्ती-अहिंसा का पालन करने से आत्मा में तृप्ति-संतुष्टि पैदा होती है । इसलिए तृप्ति का कारण होने से इसे 'तृप्ति' कहा है।
दया-कष्ट पाते हुए, मरते हुए या दुःखित प्राणियों की रक्षा करना, उनके दुःख दूर करना दया है । और अहिंसा भी प्राणियों की रक्षा करती है। इसलिए इसे दया कहना यथार्थ है।
विमुत्ती-समस्त बन्धनों से मुक्त होना विमुक्ति है। अहिंसा के पालन से प्राणी सभी बन्धनों से विमुक्त हो सकता है, जन्म-जन्मान्तर के बन्धनों से छूट सकता है । इसलिए अहिंसा को विमुक्ति कहना युक्तियुक्त है।
__ खंती-क्रोध का निग्रह शान्ति-क्षमा है। अहिंसा भी क्रोध को वश में करने से उत्पन्न होती है । अथवा शान्ति का अर्थ सहन करना या सहिष्णुता भी है।