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________________ छठा अध्ययन : अहिंसा-संवर ५२३ इसलिए इसे 'त्राण' कहा है। संसारदुःखरूपी दावाग्नि में झुलसते हुए प्राणियों को यह आश्रय देने वाली है,इसलिए इसे 'शरण' कहा है । कल्याणार्थी प्राणियों के लिए घूम-फिर कर अहिंसा के सिवाय और कहीं गति नहीं है। अन्ततः उनको अहिंसा के पास ही पहुंचना अनिवार्य हो जाता है । इसलिए अहिंसा को 'गति' कहा है । अहिंसा में वात्सल्य, दया, सेवा, सहिष्णता, धैर्य आदि अनेक गुण तथा अनेक सुख-सम्पदाएं प्रतिष्ठित हैं, टिकी हुई हैं, इसलिए इसे 'प्रतिष्ठा' कहा है। निव्वाणं-समस्त रागद्वेष, कषाय, कर्म आदि विकारों का शान्त हो जाना, बुझ जाना निर्वाण कहलाता है, इसे मोक्ष भी कहते हैं। अहिंसा निर्वाण-मोक्ष का प्रधान हेतु है । अहिंसा को अपनाए बिना कोई भी व्यक्ति निर्वाण नहीं प्राप्त कर सकता । अतः निर्वाण का प्रधान कारण होने से कारण में कार्य का उपचार करके अहिंसा को निर्वाण कहा है । वास्तव में, अहिंसा का पालन करने से साधक की आत्मा पर लगे हुए रागद्वेष व काम-क्रोधादि विकार शान्त हो जाते हैं। इसलिए निर्वाण प्राप्त कराने में प्रधान कारण अहिंसा का पर्यायवाची नाम 'निर्वाण' रखा है। निव्वुई—आत्मा की स्वस्थता निर्वृत्ति कहलाती है। विषय आदि रोगों से अस्वस्थ-अशान्त बनी हुई आत्मा को स्वस्थता और शान्ति अहिंसा से ही मिलती है । इसलिए अहिंसा का निर्वृत्ति नाम सार्थक है। ___ समाही—समताभाव को समाधि कहते हैं। लड़ाई-झगड़ों, मारपीट, वैरविरोध आदि द्वन्द्वों से जब आत्मा में असमाधि-विषमता पैदा होती है, उस समय अहिंसा का अवलम्बन इन सबसे दूर हटा कर मन में समताभाव पैदा कर देता है। इसी कारण अहिंसा को 'समाधि' कहा है। सत्ती-अहिंसा आत्मिक शक्तियों का कारण है। अहिंसा के पालन से मनुष्य में निर्भयता, वीरता, वत्सलता क्षमा, दया आदि आत्मिक शक्तियाँ उत्पन्न हो जाती हैं । आत्मिक-बल के सामने सभी पाशविक या आसुरीबल नतमस्तक हो जाते हैं । पूर्ण अहिंसक के पास सिंह और गाय, सर्प और नेवला आदि जन्मजात शत्र और हिंस्र जीव भी अपना वैरविरोध भूल कर परस्पर प्रेम करने लग जाते हैं। इसलिए अहिंसा को आत्मशक्तिरूप होने से 'शक्ति' कहा है । . अथवा अहिंसा शान्ति प्राप्त कराने वाली या शान्तिदायिनी है। आत्मा में अपूर्व शान्ति अहिंसा से ही प्राप्त होती है। मारकाट, युद्ध, द्वेष, झगड़े या वैरविरोध से कभी शान्ति नहीं मिलती। अहिंसा ही वैरविरोधों से अशान्त विश्व को शान्ति देने वाली है। इसलिए इसका 'शान्ति' नाम भी सार्थक ही है। कित्ती—यह कीर्ति का कारण है । अहिंसा पालन करने वाले की सब लोग प्रशंसा करते हैं, उसका नाम चारों ओर फैल जाता है, लोग उसे प्रतिष्ठा देते हैं,
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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