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________________ उपोद्घात महर्षियों द्वारा इस शास्त्र का अर्थरूप में प्रतिपादन किया गया है, उसी की सूत्र रूप में रचना अतिशयज्ञानी गणधर करते हैं । कहा भी है - "अत्थं भासइ अरहा, सुत्तं गंथति गणहरा निउणं," अर्थात् -अर्हन्तदेव उस समय की लोकप्रचलित भाषा (अर्धमागधी) में अर्थरूप से विषय का प्रतिपादन करते हैं, उसी को कुशलतापूर्वक द्वादशांगी आगम के रूप में प्रबुद्ध गणधर शब्दबद्ध करते हैं। पूर्वोक्त पद के द्वारा गणधर आर्य सुधर्मास्वामी ने वीतराग द्वारा प्ररूपित बता कर प्रस्तुत शास्त्र की विश्वसनीयता और अपनी नम्रता प्रगट कर दी है। वोच्छामि-इस पद के द्वारा आर्य सुधर्मास्वामी ने भगवद्भाषित प्रवचन को शास्त्ररूप में संकलित करने की प्रतिज्ञा की है। णिच्छयत्यं-इस पद से दो अर्थ सूचित होते हैं—एक तो यह कि इस शास्त्र को पढ़-सुनकर हेय-उपादेय का निश्चय करने के लिए-'आश्रवों को छोड़ने और संवरों को अपनाने का निश्चय करने के लिए', दूसरा यह कि 'निर्गतः कर्मणां चयो निश्चयो मोक्षस्तदर्थ तत्प्राप्तये' यानी जिसमें से कर्मों का संचय निकल गया है, उस मोक्ष की प्राप्ति के लिये । इस पद से शास्त्ररचना का प्रयोजन भी स्पष्ट हो जाता है। जीवन के लिए दुःखदायक, दु:खद फल प्राप्त कराने वाले और दुःखों की परम्परा बढ़ाने वाले तथा दुःखों के कारण कर्मों के बन्ध को लेकर नाना योनियों और गतियों में बार-बार भ्रमण कराने वाले कौन हैं ? इसका संक्षिप्त उत्तर हैआश्रव । अब विस्तार से इस प्रश्न का उत्तर देने के लिए इस सूत्र में सर्वप्रथम आश्रवों का निरूपण करते हैं मूलपाठ पंचविहो पण्णत्तो जिणेहिं इह अण्हओ अणादीओ । हिंसा १ मोस २ मदत्तं ३ अर्बभं ४ परिग्गहं ५ चेव ॥२॥ . संस्कृत-छाया पंचविधः प्रज्ञप्तो जिनैरिहास्नवोऽनादिकः। हिंसा मृषाऽदत्तमब्रह्म परिग्रहश्चैव ॥२॥ पदार्थान्वय-(इह) इस आगम में अथवा इस संसार में, (अण्हओ) आश्रव (हिंसा) प्राणिवध, (मोस) मृषावाद-असत्य, (अवत्तं) चोरी, (अबंभ) अब्रह्मचर्य, मथुन (परिग्गह) परिग्रह, इस प्रकार (जिणेहि) जिनेन्द्र देवों ने, (पंचविहो) पांच प्रकार का (चेव) ही, (पण्णत्तो) कहा है, और वह (अणादीओ) अनादि है। मूलार्थ-इस सूत्र में अथवा इस संसार में जिनेन्द्र देवों ने आश्रव
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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