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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
संसारसमुद्र को पार करके अपने गन्तव्यस्थल - मोक्ष में पहुंच सकती है । फिर वह डूबती नहीं ।
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अण्हयसंवर विणिच्छ्यं - आश्रवों और संवरों के भेदों और उनके अशुभशुभ फलों द्वारा उनके स्वरूपों का विशेष स्पष्टरूप से इस शास्त्र में निर्णय किया गया है । जिससे प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन के लिए हेय और उपादेय का निर्णय कर सके ।
प्रसंगवश यहाँ आश्रव और संवर के मुख्य भेद तथा द्रव्य और भाव रूप से उनके प्रकार भी बतलाते हैं
आश्रव के मुख्य भेद पांच हैं- हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह । इन पांचों आश्रवों के दो प्रकार हैं- द्रव्याश्रव और भावाश्रव । कर्मपुद्गलों का आना द्रव्याश्रव कहलाता है और आत्मा के जिन परिणामों से कर्मपुद्गल आते हैं, उन रागद्वेषादिरूप परिणामों - भावों को भावाश्रव कहते हैं । इसी प्रकार संवर के भी मुख्य भेद पांच हैं-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह । इन पांचों संवरों के भी दो प्रकार हैं- द्रव्यसंवर और भावसंवर । आते हुए कर्मों का रुक जाना द्रव्यसंवर कहलाता है और आत्मा के जिन शुद्ध परिणामों से आते हुए कर्म रुक जाते हैं, उन समिति गुप्ति आदि परिणामों को भावसंवर कहते हैं ।
पवयणस्स निस्संद - इस पद से इस शास्त्र की महत्ता बताई गई है, कि यह शास्त्र केवल वचन ही नहीं, प्रवचन है । प्रवचन किसी न किसी विशेष उद्देश्य को लेकर दिया जाता है, वह निश्चित सिद्धान्तों के अनुरूप होता है । साथ ही यह शास्त्र प्रवचन ही नहीं, प्रवचन का निस्यन्द यानी निचोड़ है । श्रमण भगवान् महावीर द्वारा कथित द्वादशांगरूप आगमों को प्रवचन कहते हैं । यह शास्त्र उस का सारभूत तत्त्व है । खजूर आदि फलों में जैसे उनकी गुठली, छिलके आदि निःसार होते हैं और उनका रस ही सारभूत होता है; वही शरीर में बल, बुद्धि और वीर्य की वृद्धि करता है, वैसे ही यह सूत्र द्वादशांगी ज्ञान का सार है। चूँकि ज्ञान का सार आचरण है । उत्तम आचरण करने से और ज्ञान द्वारा आश्रवों से निवृत्त और संवर में प्रवृत्त होने से आत्मा में बल, वीर्य और आनन्द की वृद्धि होती है, जिससे आगे चल कर मोक्षरूप उत्तम फल की प्राप्ति होती है । कहा भी है
'सामाइयमाइयं सुयनाणं जाव बिंदुसाराओ । तस्स वि सारो चरणं, सारो चरणस्स णिव्वाणं ॥'
सामायिक से लेकर बिन्दुसारपर्यन्त द्वादशांगीरूप श्रुतज्ञान है । उसका सार चारिष है, और चारित्र का भी सार निर्वाण है ।
सुहासियत्वं महेसिहि - इस पद से शास्त्र को आप्त पुरुषों द्वारा भाषित बतला कर इसकी विश्वसनीयता व्यक्त की है । जगत् के समस्त जीवों के हितैषी वीतराग