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________________ पंचम अध्ययन : परिग्रह-आश्रव ४६१ शराबखाना खोल दिया तो कभी मुर्गी खाना । कभी कत्लखाना खोला तो कभी वेश्यालय । कभी अनेक पंचेन्द्रियवधप्रेरक पशुबलि का ठेका ले लिया तो कभी अनेक पंचेन्द्रिय प्राणियों के वध से होने वाली दवाइयों का कारखाना खोल दिया । जिनमें असंख्य जीवों का घात होता हो, ऐसे कल-कारखाने लगवाने, वन में आग लगाने, जंगल कटवाने या पशुओं के चमड़े कमाने आदि के अनेक नीच व्यवसाय करते भी वे लोग नहीं हिचकिचाते । यहाँ तक कि पैसे के लिए वे नरहत्या करने को भी उतारू हो जाते हैं । परिग्रह के लिए झूठ बोलने में भी ऐसे धनजीवी लोगों को कोई संकोच नहीं होता । वे झूठी साक्षी दे देंगे, व्यापार में झूठ बोल देंगे । चंद चांदी के टुकड़ों के लिए वे चाहे जिस मामले में असत्य बोलने से नहीं हिचकेंगे । दूकान पर कोई ग्राहक आएगा तो उसे बहुत आदर-सत्कार देंगे; उसकी मिथ्याप्रशंसा करेंगे, उसके साथ बहुत मीठे-मीठे बोलेंगे और सौदा देने में उसकी गांठ अच्छी तरह काट लेंगे । साथ ही, घटिया वस्तु में बहुमूल्य बढ़िया वस्तु थोड़ी-सी मात्रा में मिला कर कीमती वस्तु की भ्रान्ति पैदा करके उससे बहुत पैसा ऐंठ लेंगे । इस प्रकार की सैकड़ों धूर्तताओं के काम करने में वे लोग उस्ताद होते हैं। मतलब यह है कि किसी भी तरह पराये धन को अपनी तिजोरी में भरने की लालसा उनमें कूट-कूट कर भरी होती है । इसलिए वे हर फन में माहिर होते हैं । ऐसा धनलोभी परिग्रहार्थी व्यक्ति संतानोत्पत्ति होने पर उनके भरणपोषण में धन खर्च होगा, इस डर से मनमें काम-वासना जागृत होने पर भी अपनी स्त्री के साथ सहवास नहीं करता । परस्त्रीसहवास की मन में आती है, उसके लिए शारीरिक और मानसिक प्रयास भी करता है, किन्तु उसमें भी नैतिक दृष्टि से नहीं, अपितु धन खर्च हो जाने के डर से प्रवृत्त नहीं होता निष्कर्ष यह है कि धन का परिग्रहार्थी मानव हिंसा, झूठ, चोरी या व्यभिचार आदि किसी भी पापकर्म को करने से नहीं हिचकता । परिहार्थी साधारण इच्छाओं से ले कर बड़ी बड़ी इच्छाओं की पिपासा से निरन्तर प्यासे बने रहते हैं । उनकी वह प्यास कभी नहीं बुझती । वे रात-दिन अप्राप्त पदार्थों की प्राप्ति की तृष्णा और प्राप्त पदार्थों पर गाढ़ आसक्ति एवं प्राप्त करने के लोभ से ग्रस्त रहते हैं । वे परिग्रह के लिए परस्पर कलह और विवाद करते हैं, आपस में सिरफुटौव्वल करते हैं और परस्पर वैर बांध लेते हैं । परिग्रह के लिए वे अपने सम्बन्धीजनों से भी गालीगलौज और हाथापाई पर उतर आते हैं । पैसे Shaya कसी का भी अपमान करने से नहीं चूकते, अथवा पैसे के लिए अपने ग्राहक आदि के द्वारा किए हुए अपमान को भी सह लेते हैं । पैसे के लिए किसी भी व्यक्ति को डाँटने-धमकाने या उसकी भर्त्सना करने से वे नहीं चूकते अथवा अर्थ के लिए वे
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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