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श्री प्रश्नब्याकरण सूत्र
ज्योतिषी देवों के मुख्यतया ५ भेद हैं—सूर्य, चन्द्र, ग्रह, नक्षत्र और तारा। इनका वर्णन पहले आ चुका है ; इसलिए यहाँ नहीं कर रहे हैं ।
विशेष बात यह है कि ज्योतिष्कों में सूर्य, चन्द्र आदि के गमन करने के भिन्न-भिन्न मार्ग नियत हैं । इनके अलग-अलग मंडल हैं, उन्हीं में वे घूमते रहते हैं। किन्तु ढाई द्वीप-समुद्र के आगे के यानी अगले पुष्कराद्धं से ले कर आगे के असंख्यात द्वीप-समुद्रों के सूर्यचन्द्रादि ज्योतिष्क स्थिर हैं। वे गमन नहीं करते; जहाँ हैं, वहीं स्थिर रहते हैं।
इसके आगे ऊध्वलोकवासी वैमानिक देव हैं,जो ज्योतिषी देवों से ऊपर अर्थात् मेरुपर्वत की चूलिका से असंख्यात योजन ऊपर-ऊध्वलोक में निवास करते हैं । इनके निवास के लिए आकाश में अकृत्रिम विमान हैं, जो चारों ओर से घनवातवलय, तनुवातवलय और घनोदधिवातवलय; इन तीन वातवलयों के आधार पर अवस्थित हैं, इन्हीं से घिरे हुए हैं। विमानों में रहने के कारण इन्हें वैमानिक देव कहते हैं । इनके दो भेद हैं-कल्पविमानवासी (कल्पोपपन्न) और कल्पातीत। जिन विमानों में इन्द्र, सामानिक, त्रायस्त्रिश, पारिषद्, आत्मरक्ष, लोकपाल, अनीक प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विष, इन दस कोटि के देवों की कल्पना होती है, उन्हें कल्पोपपन्न कहते हैं । जहाँ इन्द्र आदि का कोई भेद नहीं होता; सभी समानरूप से माने जाते . हैं, सबकी अवस्था, विभूति एकसरीखी होती है ; उन्हें कल्पातीत कहते हैं। . बारह स्वर्गों (सौधर्म आदि) के निवासी वैमानिक देव कल्पोपपन्न कहलाते हैं, इन्हीं में इन्द्र आदि १० भेद होते हैं। इनसे ऊपर ६ ग्रेवेयक और ५ अनुत्तरविमानवासी देवों में इन्द्र आदि १० भेदों की कोई कल्पना नहीं होती; वहाँ सब अहमिन्द्र होते हैं, समान होते हैं । सौधर्म और ऐशान, सानत्कुमार और माहेन्द्र, ब्रह्मलोक और लान्तक, महाशुक्र और सहस्रार, आणत और प्राणत, आरण और अच्युत इस प्रकार दो-दो स्वर्ग एक-दूसरे के समीपतम हैं। दूसरा युगल - सानत्कुमार और माहेन्द्र प्रथम युगल-सौधर्म और ऐशान से असंख्यात-योजन के फासले पर है।
कल्पातीत देवों के दो भेद हैं- वेयक और अनुत्तर। जिनके स्वों का आकार ग्रीवा-गर्दन सरीखा होता है, उन्हें ग्रे वेयक कहते है। यानी लोक का आकार जैन भौगोलिक मानचित्र के अनुसार पैर फैलाकर कमर पर हाथ रख कर खड़े हुए पुरुष के आकार के सरीखा माना गया है । कमर से नीचे के भाग के समान अधोलोक का, कमर के समान मध्यलोक का, कमर से ऊपर कंधों तक कल्पोपपन्न स्वर्गों का आकार माना गया है। इनसे ऊपर गर्दैन आती है, इसलिए वेयक देवों के निवासस्थान का आकार ग्रीवा (गर्दन) सरीखा माना गया है ।