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पंचम अध्ययन : परिग्रह-आश्रव
दोनों का ही सेवन नहीं करते । इसी प्रकार परिग्रह के कारण वे वाचिक कलह, कायिक युद्ध और वैर - विरोध, अपमान एवं अनेक यातनाओं का अनुभव करते हैं । साधारण इच्छाओं और बड़ी-बड़ी इच्छाओं की प्यास से निरन्तर प्यासे रहने वाले तृष्णा प्राप्त द्रव्य को खर्च न करने की इच्छा से और गृद्धि - अप्राप्त अर्थ की आकांक्षा एवं लोभ से ग्रस्त हुए अपनी आत्मा की रक्षा से रहित, एवं अपनी आत्मा पर किसी प्रकार का नियंत्रण न करते वे हुए मनुष्य निन्दनीय क्रोध, मान, माया और लोभ में रचेपचे रहते हैं ।
निन्द्य परिग्रह से ही माया, निदान और मिथ्यादर्शन रूप शल्य पैदा होते हैं। मन-वचन काया की दुष्ट प्रवृत्तिरूपी तीन दण्ड उत्पन्न होते हैं, धन सम्पत्ति आदि का गर्व - ऋद्धिगौरव, अनेक स्वादिष्ट गरिष्ठ पदार्थों के मिलने का अहंकार रसगौरव और अनेक सुखप्रद वस्तुओं की प्राप्ति का घमंड - सातगौरव पैदा होते हैं तथा क्रोध, मान, माया और लोभरूप चार कषाय, आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा ये चार संज्ञाएँ - वासनाएँ होती हैं । इसी तरह इन्द्रियों के शब्दादिविषय तथा हिंसा, असत्य आदि पांच आश्रवद्वार, असंयमित इन्द्रियाँ, और कृष्ण, नील, कापोत रूप तीन अप्रशस्त लेश्याएँ होती हैं । वे अपने स्वजनों के साथ के सम्बन्ध को भी खत्म कर लेते हैं उनसे अलगाव या किनाराकसी कर लेते हैं । और सचित्त, अचित्त एवं मिश्र रूप अनन्त द्रव्यों को ममतापूर्वक ग्रहण करना चाहते हैं । देवों, मनुष्यों और तिर्यंचों के सहित इस लोक में जिनेन्द्रदेवों ने परिग्रह को लोभरूप कहा है । सम्पूर्ण लोक में समस्त जीवों के लिए इसके सरीखा और कोई पाशबन्धन व प्रतिबन्धस्थान - आसक्ति का आश्रय नहीं है ।
व्याख्या
इस विस्तृत सूत्रपाठ द्वारा शास्त्रकार ने परिग्रहकर्त्ताओं का तथा कहाँ-कहाँ, किस-किस रूप में, किन-किन दुर्भावों प्रेरित हो कर वे परिग्रह सेवन करते हैं ? ; इसका भी सांगोपांग निरूपण किया है । यद्यपि इस सूत्रपाठ का अर्थ मूलार्थ और पदार्थान्वय में हम स्पष्ट कर आए हैं, फिर भी कुछ स्थलों पर विशेष विश्लेषण करना आवश्यक समझ कर नीचे उन स्थलों पर विश्लेषण प्रस्तुत करते हैं—
परिग्रह पर ममत्व का मूल कारण - इस संसार में साधु-मुनि या वीतराग अपरिग्रही होते हैं । कुछ अणुव्रती गृहस्थ अल्पपरिग्रही होते हैं । बाकी के जितने भी प्राणी हैं, वे किसी न किसी रूप में परिग्रहग्रस्त होते हैं । वे न तो ममत्त्व का