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________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव ४४१ गर्भज और औपपातिक जीवों के अतिरिक्त शेष सब जीवों का जन्म सम्मूर्च्छनज होता है। गर्भ के बिना ही इधर-उधर के समीपवर्ती परमाणुओं से जिनका शरीर बन जाता है, उन्हें सम्मूर्च्छनज या सम्मूच्छिम कहते हैं । बिच्छू, मेंढक, चींटी, कीड़े-मकोड़े, घास-पात आदि सब सम्मूर्च्छन जन्म वाले हैं। एकेन्द्रियजीव से ले कर चतुरिन्द्रिय (चार इन्द्रियों वाले) तक के जीव नियम से सम्मूर्च्छन जन्म वाले होते हैं। इनका जन्म और किसी तरह से नहीं होता। मनुष्य के मल-मूत्र, गंदगी आदि के चौदह स्थानों में उत्पन्न होने वाले मानवरूप जीवाणु भी सम्मूछिम होते हैं । सांप-मछली आदि कई पंचेन्द्रिय जीव भी सम्मूर्छन जन्म से होते हैं । इस सम्मूर्च्छनज जन्म के तीन भेद है--स्वेदज, रसज और उद्भिज्ज । पसीने से उत्पन्न होने वाले जूं, खटमल आदि जीवों को स्वेदज कहते हैं। शराब आदि रस में पैदा होने वाले जीवों को रसज कहते हैं और पृथ्वी को फोड़ कर उत्पन्न होने वाले खंजन आदि प्राणी या वृक्ष,घासपात आदि को उद्भिज्ज कहते हैं । बस और स्थावर, दोनों प्रकार के जीव पर्याप्तक भी होते हैं, अपर्याप्तक भी। जिन जीवों की शरीर आदि पर्याप्तियाँ पूर्ण हो चुकती हैं, उन्हें पर्याप्तक कहते हैं और जिनकी ये पर्याप्तियाँ पूर्ण नहीं हुईं, उन्हें कहते हैं—अपर्याप्तक । त्रस जीव स्थूलशरीर वाले ही होते हैं, इसलिए वे बादर ही होते हैं, जबकि स्थावरजीव दो प्रकार के होते हैं—बादर और सूक्ष्म । बादर जीव स्थूल शरीर वाले होते हैं,अतः अग्नि,शस्त्र आदि से उनका घात हो सकता है । इसलिए बादरशरीर वालों को बादर जीव कहते हैं। बादरशरीर उसे कहते हैं, जो शरीर दूसरों को रोक सके या बाधा पहुंचा सके अथवा दूसरों के द्वारा रोका जा सके या बाधित हो सके । जो शरीर किसी के रोकने से न रुक सके और न बाधित हो सके ; तथा जो शरीर न किसी को रोके, और न बाधा पहुंचाए ; उसे सूक्ष्म शरीर कहते हैं । सूक्ष्म शरीर वाले जीवों को सूक्ष्मजीव कहते हैं। अग्नि, शस्त्र आदि से उनका घात नहीं होता है ; वे अपनी आयु पूर्ण करके ही मरते हैं। ___ एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर कहते हैं। इनके पांच भेद हैं—पृथ्वीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वरस्पतिकायिक। इनमें से प्रत्येक के बादर और सूक्ष्म दो-दो भेद हैं । वनस्पतिकायिक जीवों के दो भेद और हैं--साधारण और प्रत्येक । जिस वनस्पति के एक शरीर के स्वामी अनन्तजीव हों, उसे साधारण वनस्पतिकायिकजीव कहते हैं और जिस वनस्पति के एक शरीर का एक ही स्वामी हो, उसे प्रत्येक वनस्पतिकायिक जीव कहते हैं। प्रत्येक वनस्पतिकायिक के दो भेद और होते हैं--सप्रतिष्ठित प्रत्येक और अप्रतिष्ठित प्रत्येक । जिस वनस्पति के एक शरीर के आश्रित अनन्त जीव रहते हैं, उसे सप्रतिष्ठित प्रत्येक कहते हैं। यानी उस
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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