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________________ ४४० श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र ऐसी योनियों में जाता है, जहां उसे ज्ञान का प्रकाश अनन्त-अनन्त जन्मों तक नहीं मिल पाता। वे योनियां हैं-त्रस, स्थावर, सूक्ष्म, बादर, साधारण शरीर, प्रत्येक शरीर, पर्याप्तक और अपर्याप्तक तथा जरायुज, अंडज, पोतज, रसज, संस्वेदिम, सम्मूच्छिम, उद्भिज्ज और औत्पातिक आदि । उक्त योनियों में बार-बार जन्म लेकर वह तिर्यञ्चगति, मनुष्यगति, देवगति और नरकगति रूप संसार में अनन्त-अनन्त चक्कर काटता रहता है। इस प्रकार बार-बार जन्म और मरण के रूप में परिभ्रमण करना ही संसार कहलाता है । संसार में रहने वाले जीव वे कहलाते हैं, जिन्होंने अभी तक मोक्ष (सिद्धगति) नहीं पाया, जिनके जन्ममरण का चक्र बंद नहीं हुआ। संसारी जीवों के मुख्यतया दो भेद हैं—त्रस और स्थावर । अपनी इच्छा से स्वतंत्रतापूर्वक चल-फिर सकते हों, ऐसे जीव त्रस कहलाते हैं । त्रस जीव द्वीन्द्रिय (दो इन्द्रियों वाले जीव) से लेकर पंचेन्द्रिय (पांच इन्द्रियों वाले) तक के प्राणी होते हैं। जिनके केवल एक ही स्पर्शन-इन्द्रिय हो, उन्हें स्थावर कहते हैं । स्थावरजीव सभी एकेन्द्रिय होते हैं। त्रस और स्थावर इन दोनों प्रकार के जीवों की उत्पत्ति जिससे होती है, उसे जन्म कहते हैं । जन्म मुख्यतया तीन प्रकार का होता है-गर्भजन्म, उपपातजन्म और सम्मूर्च्छन (सम्मूच्छिम) जन्म । गर्भ से जन्म लेने वाले गर्भज, उपपात (देवों और नारकों के स्थान विशेष) से जन्म लेने वाले औपपातिक और सम्मूर्च्छन(नर और मादा के संयोग के बिना अपने आप मिट्टी, पानी आदि के संयोग विशेष) रूप से जन्म लेने वाले सम्मूच्छिम कहलाते हैं। गर्भजन्म माता के रज और पिता के वीर्य के संयोग से होता है। यह जन्म मनुष्यों और तिर्यंच-पंचेन्द्रियों के होता है, दूसरे प्राणियों के नहीं। गर्भजन्म तीन प्रकार का होता है-जरायुज, अंडज और पोतज । रुधिर और मांस से लिपटी हुई थैली यानी गर्भ के वेष्टन को जरायु कहते हैं, उस जरायु से जो जन्म लेते हैं वे जरायुज कहलाते हैं । मनुष्य, गाय, बैल, घोड़ा आदि सब जरायुज हैं। जो अंडे से जन्म लेते हैं, वे । अंडज कहलाते हैं। समस्त प्रकार के पक्षी या सर्प आदि भी अंडज होते हैं। जो जरायु आदि के आवरण से रहित है, वह पोत कहलाता है। गर्भ से निकलते समय जिनके शरीर पर जरायु आदि किसी प्रकार का आवरण नहीं होता तथा गर्भ से निकलते ही जिनमें कूदने-फांदने की शक्ति होती है, उन्हें पोत या पोतज जीव कहते हैं—जैसे हस्ती आदि । मनुष्य के जरायुजन्म होता है, जबकि तिर्यचपंचेन्द्रियों के ये तीनों ही प्रकार के जन्म होते हैं। __देवों और नारकीय जीवों की उत्पत्ति के जो स्थानविशेष होते हैं, उन्हें उपपात कहते हैं,वे संपूटाकार होते हैं । जब किसी का जन्म देव या नारक में होता है तो वह ऐसे संपुटाकार स्थानविशेष में होता है और अन्तमुहूर्त में नवयौवन-अवस्थासहित उत्पन्न हो कर उसमें से बाहर निकल आता है । इसलिए नारकों और देवों को औपपातिक कहते हैं ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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