SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 484
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ अध्ययन : अब्रह्मचर्य-आश्रव ४५६ राजा रुधिर भी वसुदेवजी के पराक्रम से तथा बाद में उनके वंश का परिचय पा कर मुग्ध हो गया । हर्षित हो कर उसने वसुदेवजी के साथ रोहिणी का विवाह कर दिया। प्राप्त हुए प्रचुर दहेज एवं रोहिणी को साथ ले कर वसुदेवजी अपने नगर को लौटे । इसी रोहिणी के गर्भ से भविष्य में बलदेवजी का जन्म हुआ, जो श्रीकृष्णजी के बड़े भाई थे। इसी तरह किन्नरी, सुरूपा और विद्युन्मती के लिए भी युद्ध हुआ। ये तीनों अप्रसिद्ध हैं । कई लोग विद्युन्मती को एक दासी बतलाते हैं, जो कोणिक राजा से सम्बन्धित थी, और उसके लिए युद्ध हुआ था। इसी प्रकार किन्नरी भी चित्रसेन राजा से सम्बन्धित मानी जाती है, जिसके लिए राजा चित्रसेन के साथ युद्ध हुआ था । जो भी हो, संसार में ज्ञात-अज्ञात, प्रसिद्ध-अप्रसिद्ध अगणित महिलाओं के निमित्त से भयंकर युद्ध हुए हैं, जिसकी साक्षी शास्त्रकार इस सूत्रपाठ से दे रहे हैं—'अन्न सु य एवमादिएसु बहवो महिलाकएसु सुव्वंति अइक्कंता संगामा गामधम्ममूला।' अब्रह्मसेवन का दूरगामी भयंकर फल-जो बात संसार में प्रकृतिविरुद्ध, नीतिविरुद्ध, धर्मविरुद्ध तथा लोकविरुद्ध होती है, उसमें प्रवृत्ति करने में बड़ी-बड़ी अड़चने आती हैं, कई दफा तो ऐसी प्रवृत्ति करने वाले के प्राण भी खतरे में पड़ जाते हैं । अब्रह्मचर्यसेवन भी उनमें से एक है। अब्रह्मचर्यसेवन की मुख्य निमित्त स्त्री है और उसे उचित या अनुचित तरीकों से प्राप्त करने में भूतकाल में भी बड़ी-बड़ी लड़ाइयां हुई हैं, और वर्तमान में भी होती हैं। कई दफा तो जायज तरीके से किसी स्त्री के साथ पाणिग्रहण करने में भी बड़े खतरों का सामना करना पड़ता है। यह तो हई स्त्री को प्राप्त करने में दिक्कतों की बात, जिसका जिक्र इससे पहले के पृष्ठों में हम कर आए हैं । अब शास्त्रकार अब्रह्म-सेवन से होने वाले इहलौकिक और पारलौकिक, निकटवर्ती और दूरवर्ती अशुभपरिणामों का निरूपण निम्नोक्त पाठ द्वारा करते हैं—अबंभसेविणो इहलोए वि नट्ठा परलोए वि गट्ठा, महया मोहतिमिसंधकारे ....... दोहमद्धं चाउरंतसंसारकंतारं अणुपरियट्टति जीवा मोहवसं निविट्ठा ।" यह वर्णन और उसका अर्थ बिलकुल स्पष्ट है। इस सूत्रपाठ में अब्रह्मसेवन के निकटवर्ती परिणामों का पहले जिक्र किया है कि महामोहमोहित और परस्त्रीलोलुप हो कर जो अब्रह्मसेवन करता है, उसके यश-कीर्ति, बुद्धि, आत्मशक्ति, भगवद् वचनों पर श्रद्धा, चारित्रबल, निर्भयता तथा शारीरिक-मानसिक ताकत आदि गुण नष्ट हो जाते हैं। इसी का अर्थ है - इस लोक में जीवन का सर्वनाश होना । जो इस लोक का जीवन बिगाड़ देता है, उसका परलोक का जीवन तो नष्ट हो ही जाता है । इसलिये भ्रष्ट जीवन वाले व्यक्ति गाढ़ महामोहान्धकार से ग्रस्त हो कर
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy