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चतुर्थं अध्ययन : अब्रह्मचर्य - आश्रव
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(१०) रोहिणी के निमित्त हुआ संग्राम-अरिष्टपुर में रुधिर नामक राजा राज्य करता था । उसकी रानी का नाम सुमित्रा था । उसके एक पुत्री थी । उस का नाम था — रोहिणी । रोहिणी अत्यन्त रूपवती थी । उसके सौन्दर्य की बात सर्वत्र फैल गई थी । इसलिए अनेक राजामहाराजाओं ने रुधिरराजा से उसकी याचना की थी । राजा बड़े असमंजस में पड़ गया कि वह किसको अपनी कन्या दे, किसको न दे ? अन्ततोगत्वा उसने रोहिणी के योग्य वर का चुनाव करने के लिए स्वयंवर रचने का निश्चय किया । रोहिणी पहले से ही वसुदेवजी के गुणों पर मुग्ध थी । वसुदेवजी भी रोहिणी को चाहते थे । वसुदेवजी उन दिनों गुप्त रूप से देशाटन के लिए भ्रमण कर रहे थे । राजा रुधिर की ओर से स्वयंवर की आमंत्रणपत्रिकाएँ जरासंध, आदि सब राजाओं को पहुंच चुकी थीं । फलतः जरासंध, आदि अनेक राजा स्वयंवर में उपस्थित हुए । वसुदेवजी भी स्वयं बर का समाचार पाकर वहाँ आ पहुँचे । वसुदेवजी ने देखा कि इन बड़े-बड़े राजाओं के समीप बैठने से मेरे मनोरथ में विघ्न पड़ेगा, अतः मृदंग बजाने वालों के बीच में वैसा ही वेष बना कर बैठ गए। वसुदेवजी मृदंग बजाने में बड़े निपुण थे । अतः मृदंग बजाने लगे । नियत समय पर स्वयंवर का कार्य प्रारम्भ हुआ । ज्योतिषी के द्वारा शुभमुहूर्त की सूचना पाते ही राजा रुधिर ने रोहिणी (कन्या) को स्वयंवर में प्रवेश कराया । रूपराशि रोहिणी ने अपनी हंसगामिनी गति एवं नूपुर की झंकार से तमाम राजाओं को आकर्षित कर लिया । सबके सब टकटकी लगा कर उसकी ओर देख रहे थे । रोहिणी धीरे-धीरे अपनी दासी के पीछे-पीछे चल रही थी । सब राजाओं के गुणों और विशेषताओं से परिचित दासी क्रमशः प्रत्येक राजा के पास जा कर उसके नाम, देश, ऐश्वर्य, गुण और विशेषता का स्पष्ट वर्णन करती जाती थी। इस प्रकार दासी द्वारा समुद्रविजय, जरासंध आदि तमाम राजाओं का परिचय पाने के बाद उन्हें स्वीकार न कर रोहिणी जब आगे बढ़ गई तो वसुदेवजी हर्षित होकर मृदंग बजाने
लगे । मृदंग की सुरीली आवाज में ही उन्होंने यह व्यक्त किया
'मुग्धमृगनयनयुगले ! शीघ्रमिहागच्छ मैव कुलविक्रमगुणशालिनि ! त्वदर्थमहमिहागतो अर्थात् —'हे विस्मयमुग्धमृगनयने ! अब झटपट यहाँ
आ जाओ । देर मत
करो । हे कुलीनता और पराक्रम के गुणों से सुशोभित सुन्दरि ! मैं तुम्हारे लिए ही यहाँ (मृदंगवादकों की पंक्ति में) आ कर बैठा हूं ।'
चिरयस्व । यदिह ॥'
मृदंगवादक के द्वेष में वसुदेव के द्वारा मृदंग से ध्वनित उक्त आशय को सुन कर रोहिणी हर्ष के मारे पुलकित हो उठी । जैसे निर्धन को धन मिलने पर वह