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________________ ४३६ श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र में चन्द्रप्रद्योत का चिन्तन करके दूसरी गोली निगल ली। गोली के अधिष्ठाता देव के प्रभाव से उज्जयिनी नृप चंद्रप्रद्योत को स्वप्न में दासी का दर्शन हुआ । फलतः सुवर्णगुटिका से मिलने के लिए वह आतुर हो गया । उसे स्वर्णगुटिका का पता चल गया । वह शीघ्र ही गंधगज नामक उत्तम हाथी पर सवार हो कर रात्रि के समय वीतभय नगर में पहुंचा । सुवर्णगुटिका तो उससे मिलने के लिए पहले से ही तैयार बैठी थी । चन्द्रप्रद्योत के कहते ही वह उसके साथ चल दी। प्रातःकाल राजा उदयन उठा और नित्यनियमानुसार अश्वशाला आदि का का निरीक्षण करता हआ हस्तिशाला में आ पहंचा। वहाँ सब हाथियों का मद सूखा हुआ देखा तो वह आश्चर्य में पड़ गया। तलाश करते-करते राजा उदयन को एक गजरत्न के मूत्र की गंध आ आई । राजा ने शीघ्र ही जान लिया कि यहाँ गन्धहस्ती आया है। उसी की गन्ध से हाथियों का मद सूख गया । ऐसा गंधहस्ती हाथी सिवाय चन्द्रप्रद्योत के और किसी के पास नहीं है , फिर राजा ने यह बात भी सुनी कि सुवर्णगुटिका दासी भी गायब है। अतः राजा को पक्का शक हो गया कि चन्द्रप्रद्योत राजा ही दासी को भगा ले गया है। राजा उदयन ने रोषवश उज्जयिनी पर चढ़ाई करने का विचार कर लिया। परन्तु मन्त्रियों ने समझाया-"महाराज ! चन्द्रप्रद्योत कोई साधारण राजा नहीं है । वह बड़ा बहादुर और तेजस्वी है। केवल एक दासी के लिए उससे शत्रुता करना बुद्धिमानी नहीं है।" परन्तु राजा उनकी बातों से सहमत न हुआ और चढ़ाई करने को तैयार हो गया। राजा ने कहा- "अन्यायी अत्याचारी और उद्दण्ड को दण्ड देना मेरा कर्तव्य है।" अन्त में यह निश्चय हुआ कि "दस मित्र राजाओं को ससैन्य साथ लेकर उज्जयिनी पर चढ़ाई की जाय ।" ऐसा ही हुआ। अपनी-अपनी सेना लेकर दस राजा उदयननृप के दल में शामिल हुए। अन्तत: महाराजा उदयन ने उज्जयिनी पर आक्रमण किया । बड़ी मुश्किल से उज्जयिनी के पास पहुंचे। चन्द्रप्रद्योत राजा भी यह समाचार सुनते ही विशाल सेना लेकर युद्ध करने के लिए मैदान में आ डटा। दोनों में घमासान युद्ध हुआ। राजा चन्द्रप्रद्योत का हाथी तीव्रगति से मंडलाकार घूमता हुआ विरोधी सेना को कुचल रहा था । उसके मद की गंध से ही विरोधी सेना के हाथी भाग खड़े हए। अतः उदयन की सेना में कोलाहल मच गया। यह देख कर रथारूढ़ उदयन ने गंधहस्ती के पैर में खींच कर तीक्ष्ण बाण मारा। हाथी वहीं धराशायी हो गया और उस पर सवार चन्द्रप्रद्योत भी नीचे आ गिरा । अतः सब राजाओं ने मिलकर उसे जीतेजी पकड़ लिया। राजा उदयन ने उसके ललाट पर 'दासीपति' शब्द अंकित कर अन्ततः उसे क्षमाकर दिया। सचमुच, स्वर्णगुटिका के लिए जो युद्ध हुआ, वह परस्त्रीगामी कामी चन्द्रप्रद्योत राजा की रागासक्ति के कारण से हुआ।
SR No.002476
Book TitlePrashna Vyakaran Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyanpith
Publication Year1973
Total Pages940
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_prashnavyakaran
File Size21 MB
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