________________
४३४
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
वह पुनः श्रीराम के पास आ कर कहने लगा-"देव ! आपके होते मेरी ऐसी दुर्दशा हई । अतः आप स्वयं अब मेरी सहायता करें।" राम ने उससे कहा- 'तुम भेदसूचक कोई ऐसा चिह्न धारण कर लो और उससे पुनः युद्ध करो। मैं अवश्य ही उसे अपने किये का फल चखाऊंगा।"
असली सुग्रीव ने वैसा ही किया। जब दोनों का युद्ध हो रहा था तो श्रीराम ने कृत्रिम सुग्रीव को पहिचान कर बाण से उसका वहीं काम तमाम कर दिया। इससे सुग्रीव प्रसन्न होकर श्रीराम और लक्ष्मण को स्वागत पूर्वक किष्किन्धा ले गया; वहाँ उनका बहुत ही सत्कार-सम्मान किया । सुग्रीव अब अपनी पत्नी तारा के साथ आनन्द से रहने लगा।
इस प्रकार राम और लक्ष्मण की सहायता से सुग्रीव ने तारा को प्राप्त किया और जीवन भर उनका उपकार मानता रहा।
(६) कांचना के लिए-हुआ यख-कांचना के लिए भी संग्राम हुआ था,लेकिन उसकी कथा अप्रसिद्ध होने से यहाँ नहीं दी जा रही है। कई टीकाकार मगध सम्राट श्रेणिक की चिलणा रानी को ही 'कांचना' कहते हैं । अस्तु, जो भी हो, कांचना भी युद्ध की निमित्त बनी है।
(७) रक्त सुभद्रा के लिए हुआ संग्राम-सुभद्रा श्रीकृष्णजी की बहन थी; वह पांडुपुत्र अर्जुन के प्रति रक्त—आसक्त थी, इसलिए उसका नाम 'रक्तसुभद्रा' पड़ गया । एक दिन वह अत्यन्त कामासक्त होकर अर्जुन के पास चली आई । श्रीकृष्ण को जब इस बात का पता लगा तो उन्होंने सुभद्रा को वापिस लौटा लाने के लिए सेना भेजी। सेना को युद्ध के लिए आती देख कर अर्जुन किंकर्तव्यविमूढ़ हो कर सोचने लगा-'श्रीकृष्णजी के खिलाफ युद्ध कैसे करू ? क्योंकि वे मेरे आत्मीयजन हैं। और युद्ध नहीं करूंगा तो सुभद्रा के साथ हुआ प्रेमबन्धन टूट जायेगा।' इस प्रकार संदेह के झूले में झूलते हुए अर्जुन को सुभद्रा ने क्षत्रियोचित कर्त्तव्य के लिए प्रोत्साहित किया । अर्जुन ने अपना. गांडीव धनुष उठाया और श्रीकृष्णजी द्वारा भेजी हुई सेना से लड़ने के लिए आ पहुंचा । दोनों में जम कर युद्ध हुआ । अर्जुन के अमोघ वाणों की वर्षा से श्रीकृष्णजी की सेना तितरबितर हो गई। विजय अर्जुन की हुई । अन्ततोगत्वा सुभद्रा ने वीर अर्जुन के गले में वरमाला डाल दी। दोनों का पाणिग्रहण हो गया । इसी वीरांगना सुभद्रा की कुक्षि से वीर अभिमन्यु का जन्म हुआ; जिसने अपनी नववधू का मोह छोड़ कर छोटी उम्र में ही महाभारत के युद्ध में वीरोचित क्षत्रियकर्तव्य बजाया और वहीं वीरगति को पा कर इतिहास में अमर हो गया। सचमुच वीरमाता ही वीर पुत्र को पैदा करती है।
मतलब यह है कि रक्तसुभद्रा को प्राप्त करने के लिए अर्जुन ने श्रीकृष्ण सरीखे आत्मीय जन के विरुद्ध भी युद्ध किया।